vo to shahar ke sare manzar khagal aaya
Dariya mai ek Sikka mera bhi gir gaya tha
mai..n bhe jamane bhar ke sagar khangal aaya
Submitted by :-
Pushpendra Kumar Choubey
प्रिय पाठकों, कविता संसार जल्द ही एक नए और अधिक वस्तृत रूप में आपके सामने आयेगा |
बला से गर मिज़्गाँ-ए-यार[4]तश्ना-ए-ख़ूँ[5]है
रखूँ कुछ अपनी भी मि़ज़्गाँने-ख़ूँफ़िशाँ[6]के लिए
वो ज़िन्दा हम हैं कि हैं रूशनासे-ख़ल्क़[7]- ए -ख़िज्र[8]
न तुम कि चोर बने उम्रे-जाविदाँ[9]के लिए
रहा बला में भी मैं मुब्तिला-ए-आफ़ते-रश्क[10]
बला-ए-जाँ[11]है अदा तेरी इक जहाँ, के लिए
फ़लक न दूर रख उससे मुझे, कि मैं ही नहीं
दराज़-ए-दस्ती-ए-क़ातिल[12]के इम्तिहाँ के लिए
मिसाल यह मेरी कोशिश की है कि मुर्ग़े-असीर[13]
सरे क़फ़स[14]में फ़राहम[15]ख़स[16]आशियाँ [17]के लिए
गदा[18]समझ के वो चुप था मेरी जो शामत आए
उठा और उठ के क़दम, मैंने पासबाँ के लिए
बक़द्रे-शौक़[19]नहीं ज़र्फ़े-तंगना-ए-ग़ज़ल[20]
कुछ और चाहिए वुसअत[21]मेरे बयाँ[22]के लिए
दिया है ख़ल्क[23]को भी ता उसे नज़र न लगे
बना है ऐश तजम्मल हुसैन ख़ाँ[24]के लिए
ज़बाँ पे बारे-ख़ुदाया ये किसका नाम आया
कि मेरे नुत्क़ [25]ने बोसे मेरी ज़ुबाँ के लिए
नसीरे-दौलत-ओ-दीं[26]और मुईने-मिल्लत-ओ-मुल्क़[27]
बना है चर्ख़े-बरीं[28]जिसके आस्ताँ[29]के लिए
ज़माना अह्द[30]में उसके है मह्वे आराइश[31]
बनेंगे और सितारे अब आसमाँ के लिए
वरक़[32]तमाम हुआ और मदह[33]बाक़ी है
सफ़ीना[34]चाहिए इस बह्रे- बेक़राँ[35]के लिए
अदा-ए-ख़ास[36]से 'ग़ालिब' हुआ है नुक़्ता-सरा[37]
सला-ए-आम[38]है याराने-नुक़्ता-दाँ[39]के लिए
मुहब्बत थी चमन से, लेकिन अब ये बेदिमाग़ी है
के मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा
क्या ही इस चाँद-से मुखड़े पे भला लगता है
है तेरे हुस्ने-दिल अफ़रोज़[2] का ज़ेवर[3] सेहरा
सर पे चढ़ना तुझे फबता है पर ऐ तर्फ़े-कुलाह[4]
मुझको डर है कि न छीने तेरा लंबर[5] सेहरा
नाव भर कर ही पिरोए गए होंगे मोती
वर्ना[6] क्यों लाए हैं कश्ती में लगाकर सेहरा
सात दरिया के फ़राहम[7]किए होंगे मोती
तब बना होगा इस अंदाज़ का ग़ज़ भर सेहरा
रुख़[8] पे दूल्हा के जो गर्मी से पसीना टपका
है रगे-अब्रे-गुहरबार[9]सरासर[10] सेहरा
ये भी इक बेअदबी थी कि क़बा[11] से बढ़ जाए
रह गया आन के दामन के बराबर सेहरा
जी में इतराएँ न मोती कि हमीं हैं इक चीज़
चाहिए फूलों का भी एक मुक़र्रर[12]सेहरा
जब कि अपने में समावें न ख़ुशी के मारे
गूँथें फूलों का भला फिर कोई क्योंकर सेहरा
रुख़े-रौशन[13] की दमक गौहरे-ग़ल्ताँ[14] की चमक
क्यूँ न दिखलाए फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर[15] सेहरा
तार रेशम का नहीं है ये रगे-अब्रे-बहार[16]
लाएगा ताबे-गिराँबारि-ए गौहर[17] सेहरा
हम सुख़नफ़हम[18] हैं 'ग़ालिब' के तरफ़दार[19] नहीं
देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा
शब्दार्थ:
↑ बख़्त नाम का राजकुमार
↑ आलौकिक सौंदर्य
↑ अलंकरण
↑ टोपी का किनारा
↑ श्रेणी,क्रम
↑ अन्यथा
↑ जुटाए गए, उपलब्ध करवाए गए
↑ चेहरे
↑ मोती बरसाते बादलों की रग
↑ नि:संदेह
↑ लिबास,वस्त्र
↑ निर्धारित
↑ प्रकाशमान चेहरे
↑ लुढ़कते हुए मोती
↑ चाँद व सितारों की शोभा
↑ मोती बरसाती बहार की रग
↑ रत्नों की बहुमूल्यता
↑ काव्य-रसिक
↑ पक्षधर
वो सब्ज़ा ज़ार हाये मुतर्रा के है ग़ज़ब
वो नाज़नीं बुतान-ए-ख़ुदआरा के हाये हाये
सब्रआज़्मा वो उन की निगाहें के हफ़ नज़र
ताक़तरूबा वो उन का इशारा के हाये हाये
वो मेवा हाये ताज़ा-ए-शीरीं के वाह वाह
वो बादा हाये नाब-ए-गवारा के हाये हाये
ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना
शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना
मुझ से क्या पूछता है क्या लिखिये
नुक़्ता हाये ख़िरदफ़िशाँ लिखिये
बारे, आमों का कुछ बयाँ हो जाये
ख़ामा नख़्ले रतबफ़िशाँ हो जाये
आम का कौन मर्द-ए-मैदाँ है
समर-ओ-शाख़, गुवे-ओ-चौगाँ है
ताक के जी में क्यूँ रहे अर्माँ
आये, ये गुवे और ये मैदाँ!
आम के आगे पेश जावे ख़ाक
फोड़ता है जले फफोले ताक
न चला जब किसी तरह मक़दूर
बादा-ए-नाब बन गया अंगूर
ये भी नाचार जी का खोना है
शर्म से पानी पानी होना है
मुझसे पूछो, तुम्हें ख़बर क्या है
आम के आगे नेशकर क्या है
न गुल उस में न शाख़-ओ-बर्ग न बार
जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार
और दौड़ाइए क़यास कहाँ
जान-ए-शीरीँ में ये मिठास कहाँ
जान में होती गर ये शीरीनी
'कोहकन' बावजूद-ए-ग़मगीनी