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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।

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Sunday, September 14, 2014

इस दिल में उठा इक सवाल लिखते हैं

तेरी नेकी का कर जब ख्याल लिखते हैं
इस दिल में उठा इक सवाल लिखते हैं
क्यूँ इस कदर खफा है तुझसे ये ज़माना
क्यों मचा तेरी वफ़ा पे बवाल लिखते हैं........


जिसे चाहा, जो दिल के बहोत ही करीब था
लगता था के जैसे वही तेरा नसीब था
अपने सपने तक जिसके नाम तूने कर दिए
क्या पता था कि वो एक दोस्त नहीं रकीब था
बेवफ़ा तुझको कह किसी और का वो हो गया
फिर आया इक जलजला और भूचाल लिखते हैं
क्यों मचा तेरी वफ़ा पे बवाल लिखते हैं........


अभी और लिखना जारी है..........

Friday, September 12, 2014

शायद ये सफ़र यहीं तक था.............

शायद ये सफ़र यहीं तक था  राह हमारी अलग हुई अब 
शायद ये सफ़र यहीं तक था।

साथ चलेंगे बातें की थी अनजाने से अनजाने में 
आँख खुली तो देखा पाया छुपकर निकले बेगाने से।
शायद ये सफ़र यहीं तक था॥ 

दिन भी निकला रातों जैसा आँखों में कोई रतौंधी सी 
हाथों से छूकर जब देखा काली पट्टी बंधी निकली। 
शायद ये सफ़र यहीं तक था॥

 © राजीव उपाध्याय

Tuesday, September 9, 2014

कुछ छोटे सपनो के बदले

कुछ छोटे सपनो के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !
वही प्यास के अनगढ़ मोती,
वही धूप की सुर्ख कहानी,
वही आंख में घुटकर मरती,
आंसू की खुद्दार जवानी,
हर मोहरे की मूक विवशता,चौसर के खाने क्या जाने
हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !

कुछ पलकों में बंद चांदनी,
कुछ होठों में कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे,
सपनो के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उन के भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे

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