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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।

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Tuesday, October 27, 2015

गजल - इस कदर ना किसी को सताया करो।

इस कदर ना किसी को सताया करो।
वक्त पर तो कभी काम आया करो।।


बड़े मशरूफ़ हो हमने माना मगर,
कभी तो हम से मिलने आ जाया करो।१।


सामने हो तुम्हारे कोई कश-म्-कश,
हाल-ए-दिल हमको अपना सुनाया करो।२।


रहते हैं तेरे घर से जो कुछ दूर ही,
हाल माँ बाप का पूछ आया करो।३।


पहले झाँको तुम अपने  गिरेबान में,
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो।४।


शायरी से ये घर चलने वाला नहीं,
मियाँ "राजीव" कुछ तो कमाया करो।५।


---राजीव पाराशर

गीतकार साहिर लुधियानवी की याद में शानदार मुशायरा ...

...



दिनांक - 25/10/2015,
स्थान - नांगलोई, दिल्ली




तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. इस सुन्दर गीत को लिखने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी साहब ,इनका जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ था और निधन 25 अक्तूबर १९८० को हुआ ! कल नई दिल्ली में "अखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन" ,द्वारा तनेजा टायर वर्ल्ड सभागार ,नागलोई ,में इनकी याद में एक शानदार मुशायरा आयोजित किया गया ! जिसके संयोजक थे शायर असलम बेताब रामश्याम "हसीन ",राजीव तनेजा ,राजेश तंवर ,और संजय कुमार गिरि !मुशायरे में मुख्य अतिथि श्री रामचन्द्र वर्मा "साहिल", विशिष्ट अतिथि गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ एवं शायर कुमार देहलवी रहे मुशायरे में अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश प्रजापति(संपादक ट्रू मीडिया ) ने की ! मुशायरे का मंच सञ्चालन कवि दुर्गेश अवस्थी एवं असलम बेताब ने अपने लाजबाब अंदाज में किया ! सरस्वती वंन्दना कीर्ति सिंह जी ने अपनी  मधुर कंठ में की ! मुशायरे में दिल्ली एन सी आर से आये लगभग 40 शायर और कवियों ने अपनी शानदार रचनाएं सुनाई -
रामचन्द्र वर्मा साहिल -------
होके  ग़ाफ़िल  तू  अगर   शामो-सहर सोता नहीं
आज  अपने  हाल  पे  फिर  इस तरह रोता नहीं
राहें  होतीं  ख़ुशनुमाँ और  गुल बरसते हर तरफ़
दूसरों  की  राह  में गर  ख़ार  तू    बोता नहीं

निर्देश शर्मा पाबलेवाला-------
हम व्योम वास करने वाली शक्ति में भेद नही करते
हम जिस थाली में खाते है कभी उसमे भेद नही करते
हम नभ गूंजित वर्णो की माला से शब्दों को लाते है
हम मिथ्या को मिथ्या लिख दें फिर प्रकट खेद नही करते

असलम बेताब ------
दिल की आदत ख़राब कर लू क्या ।
अपनी हालत ख़राब कर लू क्या ।
दुनिया दारी : तेरे झमेलों मे
अपनी जन्नत ख़राब कर लू क्या ।

कवि रामश्याम हसीन की सुन्दर पंक्तियाँ जो श्रोताओं को बहुत पसंद आई --- 
इसी से  मैंने  कुछ  सोचा  नही  है
की जो  सोचो  कभी  होता  नही है
मिला करता हूँ मिलने को  सभी से
सभी  से तो मगर रिश्ता नहीं   है

कृष्णा नन्द तिवारी के हिन्दू मुस्लिम एकता पर लाजबाब दोहें ----
ईद मनाई साथ में , मातम में भी साथ !
आओ मिलकर थाम ले , इक दूजे का हाथ !!

हरियाणा से  आये -हरियाणवी कवि राजेश तंवर --का भी जबाब नहीं ---
तुम्हारे साथ रहकर रौशनी में मैं नहाता हूँ
कभी तुम रात पूनम की कभी दिन का उजाला हो

गाज़ियाबाद से आये कवि मनोज कामदेव जी की लाजबाब रचना ---
दीवार पे लटकी कोई शमशीर नहीं हूँ,
जो आके कैद करले वो जंजीर नहीं हूँ,
मुझको भी अपना हुनर दिखाना आता है,
तभी तो मैं बिकने वाली जाग़ीर नहीं हूँ।।

नज़फगढ़ दिल्ली से राजीव पाराशर------
इस जहाँ में तो सच्ची मुहब्बत नहीं मिलने वाली,
ढूंढ़ोगे शराफत से तो शराफत नहीं मिलने वाली।
भूख से बिलखते हुए बच्चे की आँखों में,
तुम्हें हरगिज़ कोई शरारत नहीं मिलने वाली।

इंद्रप्रस्थ दिल्ली --से  कीर्ति रतन ''निशि"----
न छलके आँख से होते तो पैमाने कहाँ जाते
ग़ज़ल गर ज़िन्दगी होती तो अफसाने कहाँ जाते

संजय कुमार गिरि की देश के वीरों के नाम लाजबाब मुक्तक ------
सर झुके गर कभी तो नमन के लिए
जान देनी पड़े तो वतन के लिए
देश पर जान अपनी फ़िदा कर चले
जिस्म पर हो तिरंगा कफ़न के लिए

मुशायरे में कवि शायर अफजाल देहलवी ,असलम जावेद (जामिया ) शायर रामश्याम हसीन शायर असलम बेताब ,राजेश तंवर ,राजीव पाराशर, शुभदा वाजपयी ,निर्देश शर्मा ,शैल भदावरी ,डॉ .पुष्पा जोशी चन्द्रकांता सिवाल ,इब्राहिम अल्वी ,दीपक गोस्वामी ,राजिन्द्र प्रजापति (संवाददाता ट्रू -मीडिया ), आरिफ देहलवी (गीतकार ) राजीव तनेजा ,कवियत्री कीर्ति सिंह,,निर्देशशर्मा ,,कृष्णानंद तिवारी ,संजू तनेजा, आदि थे !

--संजय कुमार गिरि

Thursday, October 22, 2015

विजयदशमी की हार्दिक बधाई !!!


करते हैं सबको नमन, और छोटों को प्यार।
बहुत मुबारक आपको, विजयदशमी त्यौहार।
विजयदशमी त्यौहार, चलो इस प्रण को धारें।
मन में जो कैकयी, मंथरा रावण मारें।
कहते हैं "राजीव", कि वो जन कभी न डरते।
लेते स्नेहाशीष, बड़ों को नमन हैं करते।

Wednesday, October 21, 2015

कभी तू भी मुझसे दिल लगा कर तो देख

कभी तू भी मुझसे दिल लगा कर तो देख।
 कभी मुझको भी अपनी आँखों में बसा कर तो देख।।


चाहा है तुझे इस कदर कि बिछ जाऊँगा,
इक बार मेरे दर-ए-दिल पर आकर तो देख।1।


तुझे शबनम की बूंदों सा समेट लूंगा मैं,
एक बार मेरी बाँहों में समा कर तो देख।2।


बाज़ी इश्क़ की है और तेरे सामने मैं हूँ,
झुकी हुई इन नजरों को उठा कर तो देख।3।


अगर मैं जीत भी जाऊँ तुझे ना हारने दूंगा,
तू दांव अपने दिल का लगा कर तो देख।4।


अगर कुछ कर नहीं पाया तो तेरे साथ रो लूंगा,
तू दर्द अपने दिल का सुनाकर तो देख।5।




-राजीव पाराशर

Wednesday, October 7, 2015

सावन में हर बार सखी


सावन में हर बार सखी
मन जाता है हार सखी।

आँखों से आँसू बहते हैं
रहता कब अधिकार सखी।


यादें उनकी ले आती हैं
सपनों का अम्बार सखी।


पीड़ाओं की महफ़िल है
सपनों का उपहार सखी।


दर्द सभी लेकर नाचे हैं
डमरु और सितार सखी।


---शुभदा बाजपेयी

Kavya kosh is now Kavita Sansar

http://merikuchmanpasandkavitayein.blogspot.in is now http://www.kavitasansar.com/



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