अनाउंसमेंट

कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।

इस संग्रह को और बेहतर बनाने के लिए अपने सुझाव व टिप्पणीयाँ (comment) अवश्य दें ।
आपसे निवेदन है कि आप भी इस संकलन के परिवर्धन में सहायता करें|

यदि आप किसी रचनाकार/शायर को ढूंढ रहे हैं तो आप रचनाकारों की सूची देखें।

Friday, July 29, 2011

Maang ki sindoor rekha


Main bhav soochi un bhaavon ki.....




mai bhav suchi un bhavo ki jo bike sada hi bin tole
tanhai hoo har us khat ki jo padha gya hai bin khole
har aansoo ko har patthar tak pahunchane ki laachar hook
mai sahaj arth un shabdo ka jo sune gye hai bin bole
jo kabhi nhi barsa khul kar har us baadal ka paani hoo
luv kuch ki peer bina gaayi seeta ki raam kahani hoo



jink sapno k taajmahal banne se pahle toot gye
jin haatho me do haath kabhi aane se pahle choot gye
dharti par jink khone aur paane ki ajab kahani hai
kismat ki devi maan gyi par pranay devta rooth rahe
mai maili chadar vaale us kabira ki amritvaani hoo
luv kuch ki peer bina gaayi seeta ki raam kahani hoo

Tuesday, July 26, 2011

मुहाजिरनामा


मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं ।

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं ।
अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं ।

किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं ।

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं ।

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद,
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं ।

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है,
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं ।

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं ।

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं ।

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं ।

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं ।

कई आँखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं,
के हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं ।

शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,
के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं ।

वो बरगद जिसके पेड़ों से महक आती थी फूलों की,
उसी बरगद में एक हरियल का जोड़ा छोड़ आए हैं ।

अभी तक बारिसों में भीगते ही याद आता है,
के छप्पर के नीचे अपना छाता छोड़ आए हैं ।

भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढ़ती होगी,
वही झूले में हम जिसको हुमड़ता छोड़ आए हैं ।

ये हिजरत तो नहीं थी बुजदिली शायद हमारी थी,
के हम बिस्तर में एक हड्डी का ढाचा छोड़ आए हैं ।

हमारी अहलिया तो आ गयी माँ छुट गए आखिर,
के हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आए हैं ।

महीनो तक तो अम्मी ख्वाब में भी बुदबुदाती थीं,
सुखाने के लिए छत पर पुदीना छोड़ आए हैं ।

वजारत भी हमारे वास्ते कम मर्तबा होगी,
हम अपनी माँ के हाथों में निवाला छोड़ आए हैं ।

यहाँ आते हुए हर कीमती सामान ले आए,
मगर इकबाल का लिखा तराना छोड़ आए हैं ।

हिमालय से निकलती हर नदी आवाज़ देती थी,
मियां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए हैं ।

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है,
के हम जल्दी में जमुना का किनारा छोड़ आए हैं ।

उतार आये मुरव्वत और रवादारी का हर चोला,
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं ।

जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये,
मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आए हैं ।

उधर का कोई मिल जाए इधर तो हम यही पूछें,
हम आँखे छोड़ आये हैं के चश्मा छोड़ आए हैं ।

हमारी रिश्तेदारी तो नहीं थी हाँ ताल्लुक था,
जो लक्ष्मी छोड़ आये हैं जो दुर्गा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नाज़ारा छोड़ आए हैं ।

कल एक अमरुद वाले से ये कहना गया हमको,
जहां से आये हैं हम इसकी बगिया छोड़ आए हैं ।

वो हैरत से हमे तकता रहा कुछ देर फिर बोला,
वो संगम का इलाका छुट गया या छोड़ आए हैं।

अभी हम सोच में गूम थे के उससे क्या कहा जाए,
हमारे आन्सुयों ने राज खोला छोड़ आए हैं ।

मुहर्रम में हमारा लखनऊ इरान लगता था,
मदद मौला हुसैनाबाद रोता छोड़ आए हैं ।

जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीँ हसरत के ख्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

महल से दूर बरगद के तलए मवान के खातिर,
थके हारे हुए गौतम को बैठा छोड़ आए हैं ।

तसल्ली को कोई कागज़ भी चिपका नहीं पाए,
चरागे दिल का शीशा यूँ ही चटखा छोड़ आए हैं ।

सड़क भी शेरशाही आ गयी तकसीम के जद मैं,
तुझे करके हिन्दुस्तान छोटा छोड़ आए हैं ।

हसीं आती है अपनी अदाकारी पर खुद हमको,
बने फिरते हैं युसूफ और जुलेखा छोड़ आए हैं ।

गुजरते वक़्त बाज़ारों में अब भी याद आता है,
किसी को उसके कमरे में संवरता छोड़ आए हैं ।

हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी,
वो आँखे जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आए हैं ।

तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता है
हम अपनी झील में एक चाँद उतरा छोड़ आए हैं ।

ये दो कमरों का घर और ये सुलगती जिंदगी अपनी,
वहां इतना बड़ा नौकर का कमरा छोड़ आए हैं ।

हमे मरने से पहले सबको ये ताकीत करना है ,
किसी को मत बता देना की क्या-क्या छोड़ आए हैं ।
..................ज़ारी है...................

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है


जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ
रोज़ उंगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है

दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहीं
सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है

रात भर जागते रहने का सिला है शायद
तेरी तस्वीर-सी महताब[1] में आ जाती है

एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा
सारी दुनिया दिले- बेताब में आ जाती है

ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा[2] ओढ़े हुए
कूचा - ए - रेशमो -किमख़्वाब में आ जाती है

दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें
सारी मिट्टी मिरे तालाब में आ जाती है
शब्दार्थ:
  1.  चांद
  2.  चादर

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे



हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ[1]मुझसे
मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबाँ मुझसे

दर्से-उन्वाने-तमाशा[2]बा-तग़ाफ़ुल[3]ख़ुशतर[4]
है निगहे- रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गाँ[5]

वहशते-आतिशे-दिल[6]से शबे-तन्हाई[7]में
सूरते-दूद [8]रहा साया गुरेज़ाँ [9]मुझसे

ग़मे-उश्शाक़[10]न हो सादगी आमोज़े-बुताँ[11]
किस क़दर ख़ाना-ए- आईना[12]है वीराँ मुझसे

असरे-आब्ला[13]से है जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ[14]
सूरते-रिश्ता-ए-गोहर[15]है चराग़ाँ मुझसे

बेख़ुदी बिस्तरे-तम्हीदे-फ़राग़त[16]हो जो
पुर है साये की तरह मेरा शस्बिस्ताँ[17]मुझसे

शौक़े-दीदार में गर तू मुझे गर्दन मारे
हो निगह मिस्ले-गुले-शम्मअ परीशाँ मुझसे

बेकसी हाए शबे-हिज्र की वहशत है ये
साया ख़ुरशीदे-क़यामत [18] में‍ है पिन्हाँ मुझसे

गर्दिशे-साग़रे-सद जल्वा-ए-रंगीं तुझसे
आईना दारी-ए-यक दीद-ए-हैराँ [19]मुझसे

निगह-ए-गर्म से इक आग टपकती है ‘असद’
है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाके-गुलिस्ताँ[20] मुझसे

शब्दार्थ:
  1.  परिचित
  2.  खेल-शीर्षक की शिक्षा
  3.  उपेक्षित
  4.  हर्षित
  5.  बिखरी पलकों को सी देने वाला धागा मुझसे
  6.  हृदय की तपिश के डर से
  7.  अकेलेपन की रात
  8.  धुएँ की तरह
  9.  बचता
  10.  प्रियवर का दु:ख
  11.  प्रिय प्रशिक्षक
  12.  दर्पण गृह
  13.  छालों के प्रभाव से
  14.  जंगल के रास्तों का उन्माद
  15.  मोतियों जैसा
  16.  अवकाश का उपक्रम
  17.  रात्रि-गृह
  18.  प्रलय के समय का सूर्य
  19.  चकित
  20.  उद्यान का कूड़ा-कचरा जलना

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब


फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2]
दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब

पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6]
साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब

है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर
मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब

जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11]
दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब

बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में ख़ूँ हो-हो कर
शहपरे-रंग [15] से है बालकुशा[16] मौजे-शराब

मौज-ए-गुल[17] से चराग़ाँ[18] है गुज़रगाहे ख़याल[19]
है तसव्वुर[20] में जिबस[21] जल्वानुमा मौजे-शराब

नश्शे के पर्दे में है मह्वे[22] तमाशा -ए-दिमाग़
बस कि रखती है सरे- नश-ओ-नुमा[23] मौजे शराब

एक आलम[24] पे है तूफ़ानी-ए-कैफ़ीयते-फ़स्ल[25]
मौज -ए-सब्ज़ा-ए-नौख़ेज़[26] से ता मौजे-शराब

शरहे[27] -हंगामा-ए-हस्ती[28] है, ज़हे[29]मौसमे-गुल
रहबरे-क़तरा ब-दरिया[30] है ख़ुशा[31]मौजे-शराब

होश उड़ते हैं मेरे जल्वा-ए-गुल[32] देख असद
फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा मौजे-शराब
शब्दार्थ:
  1.  बाल खोले
  2.  मदिरा की धारा
  3.  मदिरा पात्र
  4.  हृदय व हाथ की शक्ति
  5.  नशे में धुत्त होने का कारण
  6.  माली
  7.  अंगूर की बेल की छाँव
  8.  जीवन धारा
  9.  वायु का आनंद
  10.  वनस्पति की आत्मा
  11.  गर्वपूर्ण प्यास
  12.  तसल्ली
  13.  अमृत की बूँद की तरह
  14.  अंगूर की रग
  15.  रंगीन पंख
  16.  बाल खोले हुए
  17.  पुष्प लहर
  18.  प्रदीप्त
  19.  कल्पनाओं की राह
  20.  कल्पना
  21.  अत्याधिक
  22.  छुपा हुआ
  23.  विकास
  24.  स्थिति
  25.  वसंत के आने की उमंग
  26.  नवोदित हरियाली की बहार
  27.  व्याख्या
  28.  जीवन की चहल-पहल
  29.  धन्य
  30.  बूँद को नदी तक ले जाने वाला
  31.  बहुत अच्छा
  32.  फूल की बहार

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है 

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं

तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं 

है नमन उनको


मेरी यह कविता आप के बलिदान के सामने कुछ भी नहीं ... बस एक प्रणाम भर है मेरी पीढी का और हिंदी कविता का .... आप के चरणों में शत शत नमन .... आप सदा हमारे हीरो रहेंगे ...

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस देहरी पको जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय ....
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बोना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन कै सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

बादड़ियो गगरिया भर दे



Urdu Ki Behtreen Shayari (URDU + HINDI)



बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

अंबर से अमृत बरसे
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

सबकी अरदास पता है
रब को सब खास पता है
जो पानी मे घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

ये वही पुरानी राहें हैं


चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं

कुछ तुम भूली कुछ मै भूला मंज़िल फिर से आसान हुई
हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई
आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार
जुड गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

आओ हम दोनो की सांसों का एक वही आधार रहे
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

Kavya kosh is now Kavita Sansar

http://merikuchmanpasandkavitayein.blogspot.in is now http://www.kavitasansar.com/



प्रिय मित्रों ये मेरा कुछ जाने - माने कवियों / शायरों की रचनाऔं का संग्रह है । इस संग्रह को और बेहतर बनाने के लिए अपने सुझाव व टिप्पणीयाँ (comment) अवश्य दें । आपसे निवेदन है कि आप भी इस संकलन के परिवर्धन में सहायता करें यदि आप किसी रचनाकार/शायर को ढूंढ रहे हैं तो आप रचनाकारों की सूची देखें। Kumar Vishwas, Mirza Ghalib, Rahat Indori, Harivanshrai Bachchan, Anamika 'Amber' Jain, etc. (key words - kavita, sher, shayari, sher-o-shayari, hindi kavita, urdu shayari, pyaar, ishq, mohobbat shayari.)

Recomended Poetry books

Here you can find some good hindi Poetry books