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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।

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Monday, December 31, 2012

बचपन का ज़माना होता था खुशियों का खज़ाना होता था...

बचपन का ज़माना होता था
खुशियों का खज़ाना होता था
चाहत चाँद को पाने की
दिल तितली का दीवाना होता था
रोने की वजह न होती थी
हसने का बहाना होता था
खबर न थी कुछ सुबहो की
न शामों का ठिकाना होता था
माटी के घर बनाते थे
और उन को गिरना होता था
ग़म की जुबान न होती थी
न ज़ख्मों का पयमाना होता था
बारिश में काग़ज़ की कश्ती
हर मौसम सुहाना होता था
वो खेल वो साथी होते थे
“हर रिश्ता निभाना होता था …!!”- Dr. Raj Kamal

NAV VARSH KI HAARDIK SHUBHKAMNAEIN


Wednesday, November 21, 2012

आज मैंने अपना फिर सौदा किया


आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया

ज़िन्‍दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्‍हें बेचा किया

कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्‍या कहते कि तुमने क्‍या किया

हो गई थी दिल को कुछ उम्‍मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्‍छा किया

Tuesday, November 20, 2012

Mera apna tajorba hai..... wahi batla raha hoon main

Mera apna tajorba hai..... wahi batla raha hoon main !
Koi lab chhoo gayatha tab, ke ab tak gaa raha hoon main !!
Bichhud tum se ab kaise jiya jaaye bina tadpe !
jo main khud nahi samjha, wahi samjha raha hoon main !!!

Wednesday, October 24, 2012

मेरे देश में हर दिन त्‍योहार


मेरे देश में हर दि‍न त्योहार ।
दि‍न दूना और रात चौगुना बढ़ता जाये प्यार।
मेरे देश में हर दि‍न त्योहार।

महक उठा मन सौंधी खुशबू जो लाई पुरवाई।
धानी चूनर पहन खेत की हर बाली मुसकाई।
डाली-डाली फूल खि‍ले मौसम ने ली अँगड़ाई।
गली मोहल्ले घर-घर में खुशि‍यों की बँटी मि‍ठाई।
झूम-झूम कर नाचो आओ, गाओ मेघ मल्हार।
मेरे देश में हर दि‍न त्योहार।

आता है हर साल दशहरा, टि‍क्का, ईद, दि‍वाली।
क्वार करे काति‍क का स्वागत, सरदी देव-दि‍वाली।
पौष बड़ा, मावठ फुहार, होली में मीठी गाली।
ढोल, नगाड़े, चंग, मजीरा, ढफ, अलगोजा, ताली।
घूम-घूम कर रँगो-रँगाओ, गाओ ध्रुपद धमार।
मेरे देश में हर दि‍न त्योहार।

आगे पीछे दौड़े आते पर्व मनोरथ सारे।
दु:ख हल्के करते संस्कृति‍ के ये हैं अजब सहारे।
सर्वधर्म समभाव, अति‍थि देवो भव से हर नारे।
सत्यमेव जयते, वसुधैवकुटुम्बकम् के गुण न्यारे।
भूम-भूम गोपाल सजाओ, गाओ बसन्त बहार।
मेरे देश में हर दि‍न त्योहार।


रचनाकार - गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'

Monday, August 6, 2012

दीया अंतिम आस का [एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का

बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ
दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ
दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का
कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का


बस एक बूँद लहू की भरदे मेरी शिराओं में
लहरा दूँ तिरंगा मैं इन हवाओं में........
फहरा दूँ विजय पताका चारों दिशाओ में
महकती रहे मिट्टी वतन की, गूंजती रहे गूंज जीत की
सदियों तक सारी फिजाओं में………..


सपना अंतिम आँखों में, ज़स्बा अंतिम साँसों में
शब्द अंतिम होठों पर, कर्ज अंतिम रगों पर
बूँद आखरी पानी की, इंतज़ार बरसात का
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का…

अँधेरा गहरा, शोर मंद,
साँसें चंद, हौंसला बुलंद,
रगों में तूफान, ज़ज्बों में उफान,
आँखों में ऊँचाई, सपनों में उड़ान
दो कदम पर मंजिल, हर मोड़ पर कातिल
दो साँसें उधार दे, कर लूँ मैं सब कुछ हासिल

ज़ज्बा अंतिम सरफरोशी का, लम्हा अंतिम गर्मजोशी का
सपना अंतिम आँखों में, ज़र्रा अंतिम साँसों में
तपिश आखरी अगन की, इंतज़ार बरसात का

फिर एक बार जनम लेकर इस धरा पर आऊँ
सरफरोशी में फिर एक बार फ़ना हो जाऊँ
गिरने लगूँ तो थाम लेना, टूटने लगूँ तो बाँध लेना
मिट्टी वतन की भाल पर लगाऊँ
मैं एक बार फिर तिरंगा लहराऊँ
दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का

कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का......

दिनेश गुप्ता 'दिन'

Monday, July 2, 2012

जुल्फ अँगड़ाई तबस्सुम चाँद आइना गुलाब

ज़ुल्फ़-अंगडाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब 
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब 

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी 
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की क़िताब 

इस सदी की तिश्नगी का ज़ख़्म होंठों पर लिए 
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब
 
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल 
सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब
 
चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए 
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये

जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये

जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये

मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.

ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे

गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे

जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?

जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?

तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है,मुहब्बत हाशिये पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर मेंकोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से.

Tuesday, March 27, 2012

मुक्तक-१


मेरा मन तू बने, तेरा मन मैं बनूँ।
ऐसे पूजू तुझे ख़ुद नमन मैं बनूँ॥
एक ही प्रार्थना है प्रभु से मेरी।
हर जनम में तेरी ही दुल्हन मैं बनूँ॥

Tuesday, March 20, 2012

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Sunday, March 18, 2012

होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो…



गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें,
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें,
परवरदिगार, मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं,
चाहे अज़ान ना सुनें कान,
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें…
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो…
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो… होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो…

More from Kumar Vishwas.....18 mar 2012

Maa,Behan,Beti ya Mehboob ke saaye se juda,
Ek lamha na ho,Ummeed karta rehta hun,
Ek aurat hai meri ruh me sadiyon se dafan,
Har sada jis ki , mai bas "Geet" karta rehta hun.. 



*****


तुम्हें जीने में आसानी बहुत है ,
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है .
इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का, 
तो खुद की आखँ का पानी बहुत है.... 



****


अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा,
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा, 
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं,
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा, 
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र,
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा ...... 

मैं तुम्हारे लिए, जिंदगी भर दहा.....

मैं तुम्हारे लिए, जिंदगी भर दहा,तुम भी मेरे लिए रात भर तो जलो !
मैं तुम्हारे लिए, उम्र भर तक चला,तुम भी मेरे लिए सात पग तो चलो..! 
दीपकों की तरह रोज़ जब मैं जला,तब तुम्हारे भवन में दिवाली हुई,
जगमगाता,तुम्हारे लिए रथ बना,किन्तु मेरी हर एक रात काली हुई..! 
मैंने तुमको नयन-नीर सागर दिया,तुम भी मेरे लिए अँजुरी भर तो दो !
मैं तुम्हारे लिए, जिंदगी भर दहा,तुम भी मेरे लिए रात भर तो जलो..!
जब भी मौसम ने बाँटी बहारें,तुम्हें,फूल सौंपे,मुझे शूल-शँकित किया
प्रीत की रीत की,लांछना जब बँटी,तुम अलग हो गये,मैं ही पंकित किया, 
मैंने हर गीत गया,तुम्हारे लिए,तुम भी मेरे लिए.क्षीण-सा स्वर तो दो !
मैं तुम्हारे लिए, जिंदगी भर दहा,तुम भी मेरे लिए रात भर तो जलो..! 
कोई अल्हड़ हवा जब चली झूमती,मन को ऐसा लगा ज्यों तुम्हीं से मिला ,
जब भी तुम मिल गये,राह में मोड़ पर,मुझको मालूम हुआ ज़िन्दगी से मिला,
साथ आना न आना,ये तुम सोचना,किन्तु मेरे लिए वायदा कर तो दो !
मैं तुम्हारे लिए, जिंदगी भर दहा,तुम भी मेरे लिए रात भर तो जलो..! 

Wednesday, February 22, 2012

है ये दिल सहमा हुआ

है ये दिल सहमा हुआ ,
आँख में है आसू !
दुःख है सिने में
मेरी खुसी ने दम तोड़ दिया
दिल मेरा तडपता है ,
खून के आंसू रोता है और पूछता है ,
क्यूँ खुशी तुमने मेरा दमन क्यूँ छोड़ दिया
तुमने क्यूँ मुझसे मुह मोड़ ली
क्या मै इतना बुरा था !
ये क्या ,
फिजा भी है बदल गयी
कुछ देर पहले तो बादल था घना छाया
आसमान भी था रो रहा |
मौसम ने भी मेरा साथ छोड़ दिया ,
ओ तो था मेरे दुःख में सामिल
उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया !
चाँद लिया है फिजा को आगोश में
चांदनी है बिखर रही ;
देख रहा हूँ ,
तारे भी है टिमटिमा रहे
मेरी नजर खोजती है खुशी को ,
उस फिजा में
न जाने कंहा वो खो गयी है !
वो कौन है
मेरी नजर जा टिकी है एक छाया पर ,
जो धुंध सी है दिख रही !
ये क्या ,
वो छाया है मेरी तरफ बढ़ रही ,
मै ठिठका हूँ ,
ये तो कोई परी है स्वर्ग लोक की,
नही नही ये तो मेरी खुशी है !
सहसा सन्नाटा छ गया ,
जाने शोर कंहा खो गया !
चांदनी है अपने शबाब पर ,
ओठ उसके हैं हिल रहे कुछ बयाँ करने की चाहत में ,
आंसू मेरे फुट पड़े देख उसके निगांहो में ,
वो कुछ न बोल सकी ,ओठो पर उसके खामोसी छा गयी |
उसके हतेली पर थे मेरे आंसू के बूंदे ,
ये क्या मेरी खुशी लौट चली ,
मै कुछ ना बोल सका ,
न जाने क्यूँ मै बैठा रहा मूक सा ..........
कुछ पल में फिर से वो छाया बन गयी ,
चांदनी के आगोश में ओ फिर से खो गयी ...

By :- Subodh kumar sharma

Reader's Contribution (Aapka yogdan)

ye chand ye sitaro pe mene tera nam likha tha,
tab jake apne dil ki dhadkano pe tera nam likha tha,
magar afsos ye teri meri badnasibi thi ya oro ka nasib,
jo khuda ne apne hato ki lakiro me gero ka nam likha tha.

By :- Shoab Malik
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Sital chandne raat mai
khamos sadak par
jab mai tanha chalta hu
mare parchaie mujh se kahete hai
tum tanha chalo to chalo koie baat nahe,
magar mughe kis baat ke sazaa dete ho ,
kayu mujh se mera saya chin leate ho.


By:- Prakash ch. sharma

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mera jeevan bhee hai eak dhuaa sa utha ,
bhoot main aag thee aaj bhee aag hai
waqt kya cheej hai jo thaharati nahi ,
wo bhee barbad thha , ye bhee barbad hai,
sathiyon ne thama hath par sambhal na saka ,
jo mile thhe wo bhee kahan sanjad thhe,
waqt ki chot kahye huye sathiyon ,
sambhal jaou ab bhee waqt hai pass maion,
mera jeevan hai aadha , gujar sa gaya,
aisliye mujhe iasaka toh ahsas hai


By:- Ramshiromani r pal
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Kabhi Kisi Ka Yu Dil Ko Dhadaka Jana,
Aur Is Tarah Se Maan Ka Bhatak Jana,
Thahar Jana Un Palo Ka, Aur Sanso Ka Ruk Jana,
Dekhte Dekhte Unka Muskura Ke Chale Jana...


By:- Bhavesh Patel

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mera mashvara hai siyasat se door raho
ye wo hai jo insan ko haiwan bana deti hai


By:- aazad bharti

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Wednesday, January 4, 2012

Happy New Year

हर तरफ रौशनी,ख़ुशबू के जखीरे फैले , हर तरफ चेहरों पे उम्मीद की मुस्कानें हैं ,
हर तरफ कहकहे,मस्ती औ मुहब्बत का सुरूर,जिस्म में ज़ुम्बिशें हैं,हाथों में पैमाने हैं,
मैं भी देखूँ जो पलट कर तो मुझे लगता है,लम्हे खुशवार थे मेरे भी कई बीते हुए ,
मैंने आदत भी बना ली है यूँ ही खुश रहना,साल-दर-साल तेरी याद के संग जीते हुए ...

Resolution of New Year

 टी वी वाले पूछ रहे हैं 
क्या छोड़ोगे नए साल में ?
उधर सुना है अमरीका में 
ऐसा कुछ रिवाज़ है शायद 
नए साल में खुद ही खुद कुछ
अपने में से कम करने का 
मैं क्या छोडू समझ नहीं पाया हूँ अब तक
मुझ में क्या है सिवा तुम्हारे 
और तुम्हें कम कर दूँ तो फिर 
कहाँ बचूँगा नए साल में ..............

BHARAT RAAG

हर पल के गुंजन की स्वर-लय-ताल तुम्ही थे,
इतना अधिक मौन धारे हो डर लगता है .....
तुम कि विजय के एक मात्र पर्याय-पुरुष थे ,
आज स्वयं से ही हारे हो डर लगता है .....

Is deewanepan ki lou me

Is deewanepan ki lou me, dharti ambar chhut gaya,
Aankhon mein jo lehra tha, vo aanchal pal me chhut gaya,
Tuut gayi bansuri aur hum bane DWARKADHEESH magar,,
Apna Gokul bisar gaya aur gaon, gali, ghar chhut gaya

ऐसी नादानी कर बैठे...


एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे ...

हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा तो नहीं रमा ,जग में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर ,पनघट इस घट में अटक गया .
एक इंगित ने ऐसा मोड़ा,जीवन का रथ, पथ भटक गया ,
जिस "पागलपन" को करने में ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
वो पागलपन जी कर खुद को ,हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे.
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .

परिचित-गुरुजन-परिजन रोये,दुनिया ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई था अपना ,कोई उपचार ना चल पाया ,
एक नाम हुआ सारी दुनिया ,काबा-काशी एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन ये वाह-वाह , आहें हैं तब की पली हुई
वो प्यास जगी अन्तरमन में ,एक घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास दे कर जग को ,हम पानी-पानी कर बैठे .
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .

एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .
क्या मिला और क्या छूट गया , ये गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में जल कर निखरे हैं ,कुछ और आग हूँ क्या जाने ,
सांसों का मोल नहीं होता ,कोई क्या हम को लौटाए ,
जो सीस काट कर हाथ धरे , वो साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग हमें "पागल" ,कहते हैं नादानी की है ,
हैं सफल "सयाना" जो जग में , ऐसी नादानी कर बैठे
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .

mera jeevan bhee hai eak dhuaa sa utha

mera jeevan bhee hai eak dhuaa sa utha ,
bhoot main aag thee aaj bhee aag hai
waqt kya cheej hai jo thaharati nahi ,
wo bhee barbad thha , ye bhee barbad hai,
sathiyon ne thama hath par sambhal na saka ,
jo mile the wo bhee kahan sanjad thhe,
waqt ki chot kahye huye sathiyon , 
sambhal jao ab bhee waqt hai pass main,
mera jeevan hai aadha , gujar sa gaya, 
aisliye mujhe isaka toh ahsas hai,.



By : Ramshiromani r pal

Kabhi Kisi Ka Yu Dil Ko Dhadaka Jana

Kabhi Kisi Ka Yu Dil Ko Dhadaka Jana,
Aur Is Tarah Se Maan Ka Bhatak Jana,
Thahar Jana Un Palo Ka, Aur Sanso Ka Ruk Jana,
Dekhte Dekhte Unka Muskura Ke Chale Jana...



by : Bhavesh Patel

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