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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।

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Wednesday, January 4, 2012

Happy New Year

हर तरफ रौशनी,ख़ुशबू के जखीरे फैले , हर तरफ चेहरों पे उम्मीद की मुस्कानें हैं ,
हर तरफ कहकहे,मस्ती औ मुहब्बत का सुरूर,जिस्म में ज़ुम्बिशें हैं,हाथों में पैमाने हैं,
मैं भी देखूँ जो पलट कर तो मुझे लगता है,लम्हे खुशवार थे मेरे भी कई बीते हुए ,
मैंने आदत भी बना ली है यूँ ही खुश रहना,साल-दर-साल तेरी याद के संग जीते हुए ...

Resolution of New Year

 टी वी वाले पूछ रहे हैं 
क्या छोड़ोगे नए साल में ?
उधर सुना है अमरीका में 
ऐसा कुछ रिवाज़ है शायद 
नए साल में खुद ही खुद कुछ
अपने में से कम करने का 
मैं क्या छोडू समझ नहीं पाया हूँ अब तक
मुझ में क्या है सिवा तुम्हारे 
और तुम्हें कम कर दूँ तो फिर 
कहाँ बचूँगा नए साल में ..............

BHARAT RAAG

हर पल के गुंजन की स्वर-लय-ताल तुम्ही थे,
इतना अधिक मौन धारे हो डर लगता है .....
तुम कि विजय के एक मात्र पर्याय-पुरुष थे ,
आज स्वयं से ही हारे हो डर लगता है .....

Is deewanepan ki lou me

Is deewanepan ki lou me, dharti ambar chhut gaya,
Aankhon mein jo lehra tha, vo aanchal pal me chhut gaya,
Tuut gayi bansuri aur hum bane DWARKADHEESH magar,,
Apna Gokul bisar gaya aur gaon, gali, ghar chhut gaya

ऐसी नादानी कर बैठे...


एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे ...

हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा तो नहीं रमा ,जग में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर ,पनघट इस घट में अटक गया .
एक इंगित ने ऐसा मोड़ा,जीवन का रथ, पथ भटक गया ,
जिस "पागलपन" को करने में ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
वो पागलपन जी कर खुद को ,हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे.
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .

परिचित-गुरुजन-परिजन रोये,दुनिया ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई था अपना ,कोई उपचार ना चल पाया ,
एक नाम हुआ सारी दुनिया ,काबा-काशी एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन ये वाह-वाह , आहें हैं तब की पली हुई
वो प्यास जगी अन्तरमन में ,एक घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास दे कर जग को ,हम पानी-पानी कर बैठे .
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .

एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .
क्या मिला और क्या छूट गया , ये गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में जल कर निखरे हैं ,कुछ और आग हूँ क्या जाने ,
सांसों का मोल नहीं होता ,कोई क्या हम को लौटाए ,
जो सीस काट कर हाथ धरे , वो साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग हमें "पागल" ,कहते हैं नादानी की है ,
हैं सफल "सयाना" जो जग में , ऐसी नादानी कर बैठे
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .

mera jeevan bhee hai eak dhuaa sa utha

mera jeevan bhee hai eak dhuaa sa utha ,
bhoot main aag thee aaj bhee aag hai
waqt kya cheej hai jo thaharati nahi ,
wo bhee barbad thha , ye bhee barbad hai,
sathiyon ne thama hath par sambhal na saka ,
jo mile the wo bhee kahan sanjad thhe,
waqt ki chot kahye huye sathiyon , 
sambhal jao ab bhee waqt hai pass main,
mera jeevan hai aadha , gujar sa gaya, 
aisliye mujhe isaka toh ahsas hai,.



By : Ramshiromani r pal

Kabhi Kisi Ka Yu Dil Ko Dhadaka Jana

Kabhi Kisi Ka Yu Dil Ko Dhadaka Jana,
Aur Is Tarah Se Maan Ka Bhatak Jana,
Thahar Jana Un Palo Ka, Aur Sanso Ka Ruk Jana,
Dekhte Dekhte Unka Muskura Ke Chale Jana...



by : Bhavesh Patel

Kavya kosh is now Kavita Sansar

http://merikuchmanpasandkavitayein.blogspot.in is now http://www.kavitasansar.com/



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