ऐसी रंजिश होती है जोरु, जमीन और जर की।
बुझ गया चिराग़ रात, रोशनी खत्म हुई एक घर की।।
महंगाई के दौर में भी कितना सस्ता है देखो।
चन्द सिक्के रह गई है कीमत इंसानों के सर की।।
पत्थर दिल समझा था मैंने, अब जाना है खुद को।
ए 'राज़' तेरे इस मंज़र ने मेरी भी आँखें तर की।।