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Saturday, August 15, 2015

मैं जितना भूलना चाहूँ


मैं जितना भूलना चाहूँ मुझे वो याद आता है।
 के रातों को मेरे ख्वाबों आकर वो जगाता है।।
 अगर जो आईना देखूँ शकल उसकी ही दिखती है।
 जो करलूँ बन्द मैं आँखें नज़र फिर भी वो आता है।।

-राजीव पाराशर

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