हमने उनके हाल भी देखे, जो अपने संग थे
जो चले थे पीर बनकर, जब वो लौटे, नंग थे
ये सफ़ेदो-स्याह दिखतीं बस्तियाँ इस दौर की
कल यहीं पर थीं बहारें, आह! कैसे रंग थे!
बस बतौरे-यक दमे-आराम ठहरा था अमन
ज़हनो-दिल, दश्तो-ज़ुबाँ ये सब शरीक़े-जंग थे
जो चले थे पीर बनकर, जब वो लौटे, नंग थे
ये सफ़ेदो-स्याह दिखतीं बस्तियाँ इस दौर की
कल यहीं पर थीं बहारें, आह! कैसे रंग थे!
बस बतौरे-यक दमे-आराम ठहरा था अमन
ज़हनो-दिल, दश्तो-ज़ुबाँ ये सब शरीक़े-जंग थे
By : रेणुकादास बाळकृष्ण देशपांडे
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