बेघर आज भी बेघर हैं भूखों को कहाँ खाना, और वो कह रहे हैं हम न्य बदलाव लाए हैं...!
न फिज़ा बदली न मुल्क के हालत बदले हैं, पर सुना है अब नए हुक्मरान आए हैं...!
'राजीव पराशर'
प्रिय पाठकों, कविता संसार जल्द ही एक नए और अधिक वस्तृत रूप में आपके सामने आयेगा |
बेघर आज भी बेघर हैं भूखों को कहाँ खाना, और वो कह रहे हैं हम न्य बदलाव लाए हैं...!
न फिज़ा बदली न मुल्क के हालत बदले हैं, पर सुना है अब नए हुक्मरान आए हैं...!
'राजीव पराशर'
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