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दिनांक - 25/10/2015,
स्थान - नांगलोई, दिल्ली
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. इस सुन्दर गीत को लिखने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी साहब ,इनका जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ था और निधन 25 अक्तूबर १९८० को हुआ ! कल नई दिल्ली में "अखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन" ,द्वारा तनेजा टायर वर्ल्ड सभागार ,नागलोई ,में इनकी याद में एक शानदार मुशायरा आयोजित किया गया ! जिसके संयोजक थे शायर असलम बेताब रामश्याम "हसीन ",राजीव तनेजा ,राजेश तंवर ,और संजय कुमार गिरि !मुशायरे में मुख्य अतिथि श्री रामचन्द्र वर्मा "साहिल", विशिष्ट अतिथि गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ एवं शायर कुमार देहलवी रहे मुशायरे में अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश प्रजापति(संपादक ट्रू मीडिया ) ने की ! मुशायरे का मंच सञ्चालन कवि दुर्गेश अवस्थी एवं असलम बेताब ने अपने लाजबाब अंदाज में किया ! सरस्वती वंन्दना कीर्ति सिंह जी ने अपनी मधुर कंठ में की ! मुशायरे में दिल्ली एन सी आर से आये लगभग 40 शायर और कवियों ने अपनी शानदार रचनाएं सुनाई -
रामचन्द्र वर्मा साहिल -------
होके ग़ाफ़िल तू अगर शामो-सहर सोता नहीं
आज अपने हाल पे फिर इस तरह रोता नहीं
राहें होतीं ख़ुशनुमाँ और गुल बरसते हर तरफ़
दूसरों की राह में गर ख़ार तू बोता नहीं
निर्देश शर्मा पाबलेवाला-------
हम व्योम वास करने वाली शक्ति में भेद नही करते
हम जिस थाली में खाते है कभी उसमे भेद नही करते
हम नभ गूंजित वर्णो की माला से शब्दों को लाते है
हम मिथ्या को मिथ्या लिख दें फिर प्रकट खेद नही करते
असलम बेताब ------
दिल की आदत ख़राब कर लू क्या ।
अपनी हालत ख़राब कर लू क्या ।
दुनिया दारी : तेरे झमेलों मे
अपनी जन्नत ख़राब कर लू क्या ।
कवि रामश्याम हसीन की सुन्दर पंक्तियाँ जो श्रोताओं को बहुत पसंद आई ---
इसी से मैंने कुछ सोचा नही है
की जो सोचो कभी होता नही है
मिला करता हूँ मिलने को सभी से
सभी से तो मगर रिश्ता नहीं है
कृष्णा नन्द तिवारी के हिन्दू मुस्लिम एकता पर लाजबाब दोहें ----
ईद मनाई साथ में , मातम में भी साथ !
आओ मिलकर थाम ले , इक दूजे का हाथ !!
हरियाणा से आये -हरियाणवी कवि राजेश तंवर --का भी जबाब नहीं ---
तुम्हारे साथ रहकर रौशनी में मैं नहाता हूँ
कभी तुम रात पूनम की कभी दिन का उजाला हो
गाज़ियाबाद से आये कवि मनोज कामदेव जी की लाजबाब रचना ---
दीवार पे लटकी कोई शमशीर नहीं हूँ,
जो आके कैद करले वो जंजीर नहीं हूँ,
मुझको भी अपना हुनर दिखाना आता है,
तभी तो मैं बिकने वाली जाग़ीर नहीं हूँ।।
नज़फगढ़ दिल्ली से राजीव पाराशर------
इस जहाँ में तो सच्ची मुहब्बत नहीं मिलने वाली,
ढूंढ़ोगे शराफत से तो शराफत नहीं मिलने वाली।
भूख से बिलखते हुए बच्चे की आँखों में,
तुम्हें हरगिज़ कोई शरारत नहीं मिलने वाली।
इंद्रप्रस्थ दिल्ली --से कीर्ति रतन ''निशि"----
न छलके आँख से होते तो पैमाने कहाँ जाते
ग़ज़ल गर ज़िन्दगी होती तो अफसाने कहाँ जाते
संजय कुमार गिरि की देश के वीरों के नाम लाजबाब मुक्तक ------
सर झुके गर कभी तो नमन के लिए
जान देनी पड़े तो वतन के लिए
देश पर जान अपनी फ़िदा कर चले
जिस्म पर हो तिरंगा कफ़न के लिए
मुशायरे में कवि शायर अफजाल देहलवी ,असलम जावेद (जामिया ) शायर रामश्याम हसीन शायर असलम बेताब ,राजेश तंवर ,राजीव पाराशर, शुभदा वाजपयी ,निर्देश शर्मा ,शैल भदावरी ,डॉ .पुष्पा जोशी चन्द्रकांता सिवाल ,इब्राहिम अल्वी ,दीपक गोस्वामी ,राजिन्द्र प्रजापति (संवाददाता ट्रू -मीडिया ), आरिफ देहलवी (गीतकार ) राजीव तनेजा ,कवियत्री कीर्ति सिंह,,निर्देशशर्मा ,,कृष्णानंद तिवारी ,संजू तनेजा, आदि थे !
--संजय कुमार गिरि
दिनांक - 25/10/2015,
स्थान - नांगलोई, दिल्ली
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. इस सुन्दर गीत को लिखने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी साहब ,इनका जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ था और निधन 25 अक्तूबर १९८० को हुआ ! कल नई दिल्ली में "अखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन" ,द्वारा तनेजा टायर वर्ल्ड सभागार ,नागलोई ,में इनकी याद में एक शानदार मुशायरा आयोजित किया गया ! जिसके संयोजक थे शायर असलम बेताब रामश्याम "हसीन ",राजीव तनेजा ,राजेश तंवर ,और संजय कुमार गिरि !मुशायरे में मुख्य अतिथि श्री रामचन्द्र वर्मा "साहिल", विशिष्ट अतिथि गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ एवं शायर कुमार देहलवी रहे मुशायरे में अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश प्रजापति(संपादक ट्रू मीडिया ) ने की ! मुशायरे का मंच सञ्चालन कवि दुर्गेश अवस्थी एवं असलम बेताब ने अपने लाजबाब अंदाज में किया ! सरस्वती वंन्दना कीर्ति सिंह जी ने अपनी मधुर कंठ में की ! मुशायरे में दिल्ली एन सी आर से आये लगभग 40 शायर और कवियों ने अपनी शानदार रचनाएं सुनाई -
रामचन्द्र वर्मा साहिल -------
होके ग़ाफ़िल तू अगर शामो-सहर सोता नहीं
आज अपने हाल पे फिर इस तरह रोता नहीं
राहें होतीं ख़ुशनुमाँ और गुल बरसते हर तरफ़
दूसरों की राह में गर ख़ार तू बोता नहीं
निर्देश शर्मा पाबलेवाला-------
हम व्योम वास करने वाली शक्ति में भेद नही करते
हम जिस थाली में खाते है कभी उसमे भेद नही करते
हम नभ गूंजित वर्णो की माला से शब्दों को लाते है
हम मिथ्या को मिथ्या लिख दें फिर प्रकट खेद नही करते
असलम बेताब ------
दिल की आदत ख़राब कर लू क्या ।
अपनी हालत ख़राब कर लू क्या ।
दुनिया दारी : तेरे झमेलों मे
अपनी जन्नत ख़राब कर लू क्या ।
कवि रामश्याम हसीन की सुन्दर पंक्तियाँ जो श्रोताओं को बहुत पसंद आई ---
इसी से मैंने कुछ सोचा नही है
की जो सोचो कभी होता नही है
मिला करता हूँ मिलने को सभी से
सभी से तो मगर रिश्ता नहीं है
कृष्णा नन्द तिवारी के हिन्दू मुस्लिम एकता पर लाजबाब दोहें ----
ईद मनाई साथ में , मातम में भी साथ !
आओ मिलकर थाम ले , इक दूजे का हाथ !!
हरियाणा से आये -हरियाणवी कवि राजेश तंवर --का भी जबाब नहीं ---
तुम्हारे साथ रहकर रौशनी में मैं नहाता हूँ
कभी तुम रात पूनम की कभी दिन का उजाला हो
गाज़ियाबाद से आये कवि मनोज कामदेव जी की लाजबाब रचना ---
दीवार पे लटकी कोई शमशीर नहीं हूँ,
जो आके कैद करले वो जंजीर नहीं हूँ,
मुझको भी अपना हुनर दिखाना आता है,
तभी तो मैं बिकने वाली जाग़ीर नहीं हूँ।।
नज़फगढ़ दिल्ली से राजीव पाराशर------
इस जहाँ में तो सच्ची मुहब्बत नहीं मिलने वाली,
ढूंढ़ोगे शराफत से तो शराफत नहीं मिलने वाली।
भूख से बिलखते हुए बच्चे की आँखों में,
तुम्हें हरगिज़ कोई शरारत नहीं मिलने वाली।
इंद्रप्रस्थ दिल्ली --से कीर्ति रतन ''निशि"----
न छलके आँख से होते तो पैमाने कहाँ जाते
ग़ज़ल गर ज़िन्दगी होती तो अफसाने कहाँ जाते
संजय कुमार गिरि की देश के वीरों के नाम लाजबाब मुक्तक ------
सर झुके गर कभी तो नमन के लिए
जान देनी पड़े तो वतन के लिए
देश पर जान अपनी फ़िदा कर चले
जिस्म पर हो तिरंगा कफ़न के लिए
मुशायरे में कवि शायर अफजाल देहलवी ,असलम जावेद (जामिया ) शायर रामश्याम हसीन शायर असलम बेताब ,राजेश तंवर ,राजीव पाराशर, शुभदा वाजपयी ,निर्देश शर्मा ,शैल भदावरी ,डॉ .पुष्पा जोशी चन्द्रकांता सिवाल ,इब्राहिम अल्वी ,दीपक गोस्वामी ,राजिन्द्र प्रजापति (संवाददाता ट्रू -मीडिया ), आरिफ देहलवी (गीतकार ) राजीव तनेजा ,कवियत्री कीर्ति सिंह,,निर्देशशर्मा ,,कृष्णानंद तिवारी ,संजू तनेजा, आदि थे !
--संजय कुमार गिरि
बहुत ही अच्छा कार्यक्रम रहा। रिपोर्ट में शामिल सभी शायर व कवि मित्रों को बधाई। मेरे जिन मित्रों ने इस कार्यक्रम में अपनी रचनाएँ पढ़ी लेकिन उनका जिक्र रिपोर्ट में नहीँ हो सका वे निराश न हों,थोडा और प्रयास करें।अपनी रचना को इस स्तर का बनाएं कि अगली बार आपका जिक्र भी रिपोर्ट में किया जा सके।
ReplyDeleteअखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन"द्वारा गीतकार साहिर लुधियानवी की याद में आयोजित मुशायरे में आये सभी मित्रों का मैं बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ और सभी का धन्यवाद भी करता हूँ की आप सभी ने अपनी उपस्थति दर्ज करा कर मुशायरे को सफल बनाया !!!
ReplyDeleteसंजय कुमार गिरि