is mey Kuniyat,Khitab or Alqabat shamil hy..
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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।
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Wednesday, January 30, 2013
गंगा जी तेरे खेत मैं.../ हरियाणवी
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
शिवजी के करमंडल कै, विष्णु जी का लाग्या पैर।
पवन पवित्र अमृत बणकै, पर्बत पै गई थी ठहर।।
भागीरथ नै तप कर राख्या, खोद कै ले आया नहर।।।
साठ हज़ार सगर के बेटे, जो मुक्ति का पागे धाम।
अयोध्या कै गोरै आकै, गंगा जी धराया नाम।।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनो, पूजा करते सुबह शाम ।।।
सब दुनिया तेरे हेत मैं, किसी हो रही जय जयकार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
अष्ट वसु तन्नै पैदा किये, ऋषियों का उतार्या शाप।
शांतनु कै ब्याही आई, वसुओं का बनाया बाप।।
शील गंग छोड कै स्वर्ग मैं चली गई आप।।।
तीन चरण तेरे गए मोक्ष मैं, एक चरण तू बणकै आई।
नौसै मील इस पृथ्वी पै, अमृत रूप बणकै छाई।।
यजुर-अथर्व-साम च्यारों वेदों नै बड़ाई गाई।।।
शिवजी चढ़े थे जनेत मैं, किसी बरसी थी मूसलधार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
गौमुख, बद्रीनारायण, लछमन झूला देखि लहर।
हरिद्वार और ऋषिकेश कनखल मैं अमृत की नहर।।
गढ़मुक्तेश्वर, अलाहबाद और गया जी पवित्र शहर।।।
कलकत्ते तै सीधी होली, हावड़ा दिखाई शान।
समुन्द्र मैं जाकै मिलगी, सागर का घटाया मान।।
सूर्य जी नै अमृत पीकै अम्बोजल का किया बखान।।।
इक दिन गई थी सनेत मैं, जित अर्जुन कृष्ण मुरार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
मौसिनाथ तेरे अन्दर जाणकै मिले थे आप।
मानसिंह भी तेरे अन्दर छाण कै मिले थे आप।।
लख्मीचंद भी तेरे अन्दर आण कै मिले थे आप।।।
जै मुक्ति की सीधी राही तेरे बीच न्हाणे आल़ा।
पाणछि मैं वास करता, एक मामूली सा गाणे आल़ा।।
एक दिन तेरे बीच गंगे मांगेराम आणे आल़ा।।।
राळज्यागा तेरे रेत मैं कित टोहवैगा संसार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
शिवजी के करमंडल कै, विष्णु जी का लाग्या पैर।
पवन पवित्र अमृत बणकै, पर्बत पै गई थी ठहर।।
भागीरथ नै तप कर राख्या, खोद कै ले आया नहर।।।
साठ हज़ार सगर के बेटे, जो मुक्ति का पागे धाम।
अयोध्या कै गोरै आकै, गंगा जी धराया नाम।।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनो, पूजा करते सुबह शाम ।।।
सब दुनिया तेरे हेत मैं, किसी हो रही जय जयकार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
अष्ट वसु तन्नै पैदा किये, ऋषियों का उतार्या शाप।
शांतनु कै ब्याही आई, वसुओं का बनाया बाप।।
शील गंग छोड कै स्वर्ग मैं चली गई आप।।।
तीन चरण तेरे गए मोक्ष मैं, एक चरण तू बणकै आई।
नौसै मील इस पृथ्वी पै, अमृत रूप बणकै छाई।।
यजुर-अथर्व-साम च्यारों वेदों नै बड़ाई गाई।।।
शिवजी चढ़े थे जनेत मैं, किसी बरसी थी मूसलधार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
गौमुख, बद्रीनारायण, लछमन झूला देखि लहर।
हरिद्वार और ऋषिकेश कनखल मैं अमृत की नहर।।
गढ़मुक्तेश्वर, अलाहबाद और गया जी पवित्र शहर।।।
कलकत्ते तै सीधी होली, हावड़ा दिखाई शान।
समुन्द्र मैं जाकै मिलगी, सागर का घटाया मान।।
सूर्य जी नै अमृत पीकै अम्बोजल का किया बखान।।।
इक दिन गई थी सनेत मैं, जित अर्जुन कृष्ण मुरार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
मौसिनाथ तेरे अन्दर जाणकै मिले थे आप।
मानसिंह भी तेरे अन्दर छाण कै मिले थे आप।।
लख्मीचंद भी तेरे अन्दर आण कै मिले थे आप।।।
जै मुक्ति की सीधी राही तेरे बीच न्हाणे आल़ा।
पाणछि मैं वास करता, एक मामूली सा गाणे आल़ा।।
एक दिन तेरे बीच गंगे मांगेराम आणे आल़ा।।।
राळज्यागा तेरे रेत मैं कित टोहवैगा संसार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
रचनाकार:
Hariyanvi Ragni (lokgeet),
मांगे राम
इन्सानों में मैने दिल की तलाश की हैं...
इन्सानों में मैने दिल की तलाश की हैं...
हर जिस्म में मैने सांसों की तलाश की हैं...
बाग़ में उडते हुए हर तितली के पिछे...
हर फूल में मैने खुशबू की तलाश की हैं...
सितारोंके आगे इक जहां और भी हैं...
रातों में मैने कहकशां की तलाश की हैं...
लहराते इन मौजों में खो गएं हैं लोग...
सागर में मैने मोतियोंकी तलाश की हैं...
गुज़र गया हैं जो वक्त वो तेरा था ही नहीं...
आनेवाले हर कल की मैने तलाश की हैं...
वक़्त इबादत का कहां से मिलेगा मुझको...
हर बुत में मैनें खुदा की तलाश की हैं...
तुने देखा हैं कहा उन हसीन लम्हों को ’पदम’...
ज़िंदगी भर मैने जिनकी तलाश की हैं...
बरसों की खोज का नतीजा ये निकला...
बरसों की खोज का नतीजा ये निकला...
दिल की जगह सीनेसे पत्थर निकला...
हासिल ए इबादत कुछ भी नहीं हैं यारों...
खुदा के नाम इक छोटासा बुत निकला...
हवाएं आएगी फ़िज़ा में फ़ैल जाएगी...
शजर पे हर पत्ता बडा ही ज़र्द निकला...
ये लोग जो बडे मासूम बने फ़िरते हैं...
कोई ज़ालिम कोई गुनाहगार निकला...
खुद को हम इक समंदर समझते थे ’पदम’
ज़हन के तह से बस इक कतरा निकला...
Tuesday, January 29, 2013
Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon
Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon
Pal Do Pal Meri Kahani Hai
Pal Do Pal Meri Hasti Hai
Pal Do Pal Meri Jawani Hai
Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon
Mujhse Pahele Kitne Shayar Aaye Aur Aakar Chaley Gaye
Kuch Anhein Barkar Laut Gaye Kuch Nagme Gaa Kar Chaley Gaye
Woh Bhi Ek Pal Ka Kissa Thhey Main Bhi Ek Pal Ka Kissa Hoon
Kal Tumse Jhuda Ho Jaunga Jo Aaj Tumhara Hissa Hoon
Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon
Kal Aur Ayenge Nagmon Ki Khilti Kaliyan Chunnewale
Mujhese Behetar Kahenewale Tumse Behetar Sunnewale
Kal Koi Mujhko Yaad Karhey Kyon Koi Mujhko Yaad Karhey
Masroof Zamana Mere Liye Kyon Waqt Apna Barbadh Kare
Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon
रचनाकार:
Sahir Ludhiyanvi
Nahi Hote !!!
Vishdharo'n beech rahe tab jana,
Vish insano me jyada hai.
Insani vishdansho'n ke,
Koi nidan nahi hote.
Peeda ke sagar manthan me,
Til-til jeevan kat diya,
Amrit pas jo hota apne to,
Kandho'n per lash nahi dhote.
Swet pankh wale bagulo'n se,
Machliyan talab ki chali gayi.
Swet vasan wale sab sant nahi hote.
Antar ki pyas na bujh payi,
Sagar-sagar nap liye,
Hamko samajh napaya jag,
Phirte man me ye santap liye.
Swarth heenta hoti sab me to,
Jag me koi pap nahi hote.
Jisko jitna apna samjha,
Usse utne hi ghav mile,
Chal karna humko aata to,
Apne path alag nahi hote.
Pashani chaviyon ke aage,
Roye gaye chillaye,
Pashan nahi pighle tab samjhe,
Pashano'n ke hirday nahi hote.
Nakli range mukhoto'n ke sang, Hum nibah na kar paye,
Rangmancho'n ki iss duniya me,
Jhute abhinay hum se nahi hote.
Poem By : 'Prakash Pandey"
रचनाकार:
Reader's Contribution
युधिष्ठिर कहाँ है
दीपक तले अन्धेरा ?
दीपक का नहीं
दीपक के जन्म की दास्तान है
दीपक के अस्तित्व की पहचान है
दीपक तले अन्धेरा
दीपक का विद्रोह है ,अँधेरे से
दीपक का नृत्य है उजाले के गीत पर
दीपक तले अँधेरा
दीपक का प्रश्न है ---
खुद से
दीपक का आश्चर्य है
खुद के होने पर
दीपक तले अन्धेरा
अंधेरी राहों पर चलनेवालों का सूरज है
एक यक्ष प्रश्न है
युधिष्ठिर कहाँ है
'अंशु परिहार"
रचनाकार:
Reader's Contribution
दोस्ती जब भी मिलती है
न तो बाज़ार में बिकती मिलती है
न ही राह से गुजरते मिलती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँही मिलती है
न तो वफ़ा का दम भरते मिलती है
न जफा का रोना रोते मिलती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है
जिंदगी को खाते घुन साफ़ करती है
बंद पड़े पड़े जकड गए खिड़की दरवाज़े खोल देती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है
नए क्षितिज से जान पहचान कराती है
या कोई अँधेरा कोना रोशन करती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है...
'अंशु परिहार"
रचनाकार:
Reader's Contribution
कहीं सुबह की दस्तक सुनाई दी है
तू ,
एक सर्द शाम का एक पैगाम
दिन की थकी धूप की गर्माहट लिए
रात की ठण्ड से निबटने का आश्वासन दिए
***
कहीं कुछ तो हुआ है
शायद ,सूरज ने सागर की बाहों में
पनाह लेने से पहले मेरा नाम लिया है
आज की शाम में कहीं सुबह की दस्तक सुनाई दी है
***
'अंशु परिहार"
रचनाकार:
Reader's Contribution
माना की तू
माना की तू आंधी है
मेरे हर क्षितिज को ढकती
पर मैं भी इस सहारा में बिछी रेत नहीं हूँ ।
शौक होगा तेरा रोकना, रास्ता मेरा
पर मेरा सन्नाटा भी जानता है
तुझे अपनी साँसों में खींचना ,
रोज ये आसमान तेरी ताकत को मिटटी होते देखता है
और मैं तुझ पर पाँव धर
चल देती हूँ
अपने क्षितिज की ओर ।।
"अंशु परिहार"
रचनाकार:
Reader's Contribution
फिर भी उसी से प्यार करता हूँ
जो दिल में है मैं हर उस बात का इकरार करता हूँ ।
उसी को चाहने की ये खता हर बार करता हूँ ।।
मुझे हांसिल नहीं है प्यार उसका जानता हूँ मैं ।
मगर सच है के मैं फिर भी उसी से प्यार करता हूँ ।।।
रचनाकार:
Rajeev Prashar
अपने उजालो की खातिर अक्सर
लडखडाता हूँ ,संभलता हूँ, गिरता हूँ फिर से उठके चलता हूँ ,
चिराग मयस्सर नही है मुझे इन अंधेरों में,
अपने उजालो की खातिर अक्सर आहिस्ता आहिस्ता मैं खुद ही जलता हूँ ....
"suresh"
रचनाकार:
Reader's Contribution
GUMNAM HO GAYI
Suraj ke aangan se nikle,
din tapte-tapte sham ho gayi,
patra vyatha ke padhte-padhte,
apni umar tamam ho gayi.
peeda hastakshar the jo,
jag ne unko geet kaha ,
peer hirday ki dunia me ,
adhar-adhar badnam ho gayi.
jag ko khushi batnen me,
aansu ki boond-boond neelam ho gayi,
samay shila ke abhilekhon me,
ek dard katha gumnam ho gayi.
Poem By -Prakash Pandey
रचनाकार:
Reader's Contribution
Friday, January 25, 2013
मुक्तक-२
नयन में प्राण अटके हैं चले आओ मेरे प्रियवर।
मैं देखूं राह जीवन भर, तुम्हारी राधिका बन कर॥
अगर सीता मैं बन जाऊं तो तुम भी राम बन जाना।
बना लूंगी तुम्हे भी चाँद, जो मैं बन गई अम्बर॥
रचनाकार:
Anamika 'Amber' Jain,
Anamika ambar jain
गीत....मौसम जो पहले प्यार का आना था आ गया....
आँखों के रास्ते मेरे दिल में समां गया।
न जाने कैसा जादू वो मुझको दिखा गया
आँगन में दिल के वो नई कलियाँ खिला गया।
मौसम जो पहले प्यार का आना था आ गया॥
समझाया दिल को आहटों का डर नही अच्छा।
दिल का धड़कना बात बात पर नही अच्छा॥
यूँ जागना जगाना रात भर नही अच्छा।
कुछ भी समझ ना पाऊ नशा कैसा छा गया।
मौसम जो................................................... ॥
हर दिन है सुहाना सा हर एक रात अलग है।
सावन नया-नया सा है, बरसात अलग है॥
यूँ जिंदगी वही है मगर बात अलग है।
मीठी कसक है जिसकी सितम ऐसा ढा गया॥
मौसम जो................................................... ॥
जब किसी अति-प्रिय के घर आने की सुचना मिलती है, तो प्रेयसी का अपने मन से नियंत्रण खो जाता है। तब कहती हूँ....
अब घर को सजाऊ मैं कभी ख़ुद को सजाऊ।
मैं सब से हर एक बात हर एक राज छुपाऊ॥
सखियों को भी बताऊँ तो मैं कैसे बताऊँ।
दिल को भी कहाँ है ये ख़बर किस पे आ गया॥
मौसम जो................................................... ॥
रचनाकार:
Anamika 'Amber' Jain,
Anamika ambar jain
शहीद के बेटे की दीपावली...
अनामिका अम्बर का ये गीत हिन्दी काव्य मंचो पर बेहद पसंद किया गया है....। इस गीत पर अनेक नगरो में नाटिकाएं भी हुई हैं।
इस गीत में एक 8 साल का बेटा दीपावली के त्यौहार पर अपनी माँ से बार-बार प्रश्न करता है की माँ मेरे पिता जी अभी तक क्यों नही आए हैं...उसकी माँ को पता चलता है की उसका पति और उस बच्चे का पिता सीमा पर युद्ध के दौरान शहीद हो गया है....पर वो अपने बेटे से इस बात को नही कह पाती.....आइये पढ़ते हैं ह्रदय को झकझोर देने वाले इस गीत को....
चारो तरफ़ उजाला पर अँधेरी रात थी।
वो जब हुआ शहीद उन दिनों की बात थी॥
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार।
दीपावली पे क्यो ना आए पापा अबकी बार॥
माँ क्यो न तूने आज भी बिंदिया लगाई है ?
हैं दोनों हात खाली न महंदी रचाई है ?
बिछिया भी नही पाँव में बिखरे से बाल हैं।
लगती थी कितनी प्यारी अब ये कैसा हाल है ?
कुम-कुम के बिना सुना सा लगता है श्रृंगार....
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
बच्चा बहार खेलने जाता है...और लौट कर शिकायत करता है....
किसी के पापा उसको नये कपड़े लायें हैं।
मिठाइयां और साथ में पटाखे लायें हैं।
वो भी तो नये जूते पहन खेलने आया।
पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढाया।
अब तो बतादो क्यों है सुना आंगन-घर-द्वार ?
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
दो दिन हुए हैं तूने कहानी न सुनाई।
हर बार की तरह न तूने खीर बनाई।
आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा।
तुमसे न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूंगा।
ऐसा क्या हुआ के बताने से हैं इनकार
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
विडंबना देखिये....
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए ।
जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए।
पूछते-पूछते वह हो गया निराश।
जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।
वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....
मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया।
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया॥
पापा का जो काम रह गया है अधुरा।
लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा॥
आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार।
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
रचनाकार:
Anamika 'Amber' Jain
Ghalib ki kalam se....
Hai Khayal-e-Husn Mei Husn-e-Amal Ka Sa Khayal..
Khuld Ka Ik Dar Hai,Meri Gor Ke Ander Khula..
*Khuld---Jannat, heaven Gor--Qabr,Grave
**********
GHalib' Hamein Na Ched Ki Phir Josh-e-Ashq Se
Baithe Hain Ham Tahayya-e-Toofaan Kiay Hue
*Tahayya...Irada
**********
Aashiqii Sabr-Talab Aur Tamannaa Betaab
Dil Kaa Kyaa Rang Karuun Khuun-E-Jigar Hone Tak
**********
Phir Hue Hein Gawaah-e-Ishq Talab
Ashq_Baarii Kaa Hukm_Zaarii Hai
**********
Jaam-e-Har Zarra, Hai Sarshar-e-Tamanna Mujh Se..
Kiska Dil Hu'n, Kii Do Alam Se Lagaya Hai Mujhe..
*********
'Ghalib' Tera Ahwal Suna Denge Ham Unko..
Woh Sun Ke Bula Le, Yeh Izaara Nahi Karte..
*Ahwal--Ache haal Izaara--Daava
*********
Kis se, mehromi e qismat ki shikayat kijiye
Hum ne chaha tha ke mar jayein, so wo bhi na hua
********
Had chahye saza mein aqobat k wasty
Akhir gunahgar hun kafir nahi hon mein...!
********
Marte Hein Aarzu Mein Marne Ki..
Maut Aati Hein, Per Nahi Aati..
********
Phir Ussi Bewafa Pe Marte Hein..
Phir Wahi Zindagi Hamari Hein.
********
Rahi Naa Taqat-e-Guftaar Aur Agar Ho Bhi..
Toh Kis Umeed Pe Kahiye Ki Aarzu Kya Hein..
********
Kab Woh Sunta Hein Kahani Meri..
Aur Phir Woh Bhi Zubani Meri..
********
Ghalib khasta k bagair kon se kaam band hein
royiye zaar zaar kya ? .... kijiye hye hye kyun
*********
ishq se tabiyat ne zeest ka mazaa paya
dard ki dawa paai dard la dawa paya
***
Ghalib's full name ( Ghalib ka pura naam ): "Najjmudollah Dabeerul-Mulk Mirza Nosha Mirza Asad-ullah Khan Baig Ghalib"
रचनाकार:
Mirza Ghalib
Tum Bhi GHAALiB ! Kamaal Kartay ho..
Dukh Day Kar Sawaal Kartay ho,
Tum Bhi GHAALiB ! Kamaal Kartay ho..
Daikh Kar Pooch Liyaa haal meraa,
Chalo Kuch tou Khayaal Kartay ho..
Shehar -e- Dil may Ye Udaasiyaan Kaisi
Ye Bhe mujh say Sawaal Kartay ho
Marnaa Chaahain tou mar nahe Saktay,
tum Bhe Jeenaa muhaal Kartay ho..
Ab Kiss Kiss Ki misaal Doon tum Ko
her Sitam Bay-misaal Kartay ho
रचनाकार:
Mirza Ghalib
Thursday, January 10, 2013
Phir mujhe diidaa-e-tar yaad aayaa
phir mujhe diidaa-e-tar yaad aayaa
dil jigar tashnaa-e-fariyaad aayaa
dam liyaa thaa na qayaamat ne hanoz
phir teraa vaqt-e-safar yaad aayaa
saadagii haaye tamannaa yaanii
phir wo naii_rang-e-nazar yaad aayaa
uzr-e-vaamaa.Ndagii ae hasrat-e-dil
naalaa karataa thaa jigar yaad aayaa
zindagii yuu.N bhii guzar hii jaatii
kyo.n teraa raah_guzar yaad aayaa
kyaa hii rizavaan se la.Daaii hogii
ghar teraa Khuld me.n gar yaad aayaa
aah wo jurrat-e-fariyaad kahaa.N
dil se ta.ng aake jigar yaad aayaa
phir tere kuuche ko jaata hai Khayaal
dil-e-Gum_gashtaa magar yaad aayaa
koii viiraanii-sii-viiraa.Nii hai
dasht ko dekh ke ghar yaad aayaa
mai.n ne majanuu.N pe la.Dakapan me.n 'Asad'
sang uThaayaa thaa ke sar yaad aayaa
रचनाकार:
Mirza Ghalib
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा..
एक झूठ है आधा सच्चा सा..
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस..
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा..
जीवन का एक ऐसा साथी है..
जो दूर हो के पास नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
हवा का एक सुहाना झोंका है..
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा..
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले..
कभी अपना तो कभी बेगानों सा..
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र..
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है..
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है..
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं..
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है..
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है..
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा..
एक झूठ है आधा सच्चा सा..
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस..
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा..
जीवन का एक ऐसा साथी है..
जो दूर हो के पास नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
हवा का एक सुहाना झोंका है..
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा..
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले..
कभी अपना तो कभी बेगानों सा..
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र..
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं..
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है..
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है..
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं..
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है..
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है..
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं..
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं..??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
Sunday, January 6, 2013
द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयंगे..
छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयेंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं..वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयेंगे |
कल तक केवल अँधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है
होठ सील दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे | :(
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