न तो बाज़ार में बिकती मिलती है
न ही राह से गुजरते मिलती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँही मिलती है
न तो वफ़ा का दम भरते मिलती है
न जफा का रोना रोते मिलती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है
जिंदगी को खाते घुन साफ़ करती है
बंद पड़े पड़े जकड गए खिड़की दरवाज़े खोल देती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है
नए क्षितिज से जान पहचान कराती है
या कोई अँधेरा कोना रोशन करती है
दोस्ती जब भी मिलती है
जिसको भी मिलती है
तो बस यूँ ही मिलती है...
'अंशु परिहार"
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