मुक्तक-२
नयन में प्राण अटके हैं चले आओ मेरे प्रियवर।
मैं देखूं राह जीवन भर, तुम्हारी राधिका बन कर॥
अगर सीता मैं बन जाऊं तो तुम भी राम बन जाना।
बना लूंगी तुम्हे भी चाँद, जो मैं बन गई अम्बर॥
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