निगाहों में भटकती हैं ,जुबां पर अटकती हैं
तुम इनसे कुछ न कहना
क्योंकि ये कभी हंसती हैं तो कभी सिसकती हैं
ये दिल की बातें हैं ....
सूनी स्याह रातों में, हरजाई सूरज की इतराती बेवफाई में
थाम कर हाथ तुम्हारा
राह जिंदगी की कोई नई दिखाती हैं
ये दिल की बातें हैं .....
युगों तक आँखें बंद कर
सोये होने का भरम देती हैं?!!!!
हर मेले तीज त्यौहार में
गीत संगीत और ताल में
भर विरह वेदना
अनदेखे -अनजाने मितवा को पुकार उठती हैं
मेले को स्तब्ध कर ,जीवन का कोई नया राग देती हैं
ये दिल की बातें हैं ....
जेठ की भरी दुपहरी में ,अकेले में वीराने में
देख फटी छाती धरती की
पीड़ा पे मरहम लगाती हैं
चिलचिलाती धूप में सौंधी मिटटी की खुशबू जगाती हैं
ये दिल की बातें हैं ....
अंशु परिहार
0 comments:
Post a Comment