हम कलम करते नहीं है शीश वैरी का ,
पर सरहदों के पार एक शैतान रहता है !
ललकार पर भी वार हम करते नहीं क्यूँ ,
फ़ौज के सर पर हमारा मान रहता है !
तहजीब की लम्बी सियासत कायरों से क्यूँ ,
बुजदिलों को जीतना आसान रहता है !
धरती हमारी मखमली चादर किनारी स्वर्ण की ,
राज्य इसके मोतियों के बेलबूटे है !
क्षीर की नदियाँ जलाशय हेम कुंडो से ,
दम लगाकर हलधरों ने धान कूटे है !
द्वेष की ज्वाला जलाती आप ही घर को ,
दुश्मनों के शर्तिया ही भाग फूटे है !
पर सरहदों के पार एक शैतान रहता है !
ललकार पर भी वार हम करते नहीं क्यूँ ,
फ़ौज के सर पर हमारा मान रहता है !
तहजीब की लम्बी सियासत कायरों से क्यूँ ,
बुजदिलों को जीतना आसान रहता है !
धरती हमारी मखमली चादर किनारी स्वर्ण की ,
राज्य इसके मोतियों के बेलबूटे है !
क्षीर की नदियाँ जलाशय हेम कुंडो से ,
दम लगाकर हलधरों ने धान कूटे है !
द्वेष की ज्वाला जलाती आप ही घर को ,
दुश्मनों के शर्तिया ही भाग फूटे है !
DINESH KUMAR NATANI
there are two erors in this poem :in 2nd line sarhadon ke paar me shaitan....instead of sarhado ke par...and in second last line dwesh ki jwala jalati aap hi ghar ko....insted of dwesh ki jalati...means jwala word is missing
ReplyDeleteक्षमा चाहूँगा इस अपनी जल्दबाजी के चलते मैं कुछ गलतियां सही नहीं कर पाया , किन्तु आपका धन्यवाद जो आपने इस और ध्यान दिया
DeleteReally a very nice poetry...its rare to find good hindi poets these days...but I really like the ones over here...and especially this one.
ReplyDeleteThanks Roopal ji, please have a look at other poems also, you will find some more good hindi poems.
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