इस दिल में उठा इक सवाल लिखते हैं
क्यूँ इस कदर खफा है तुझसे ये ज़माना
क्यों मचा तेरी वफ़ा पे बवाल लिखते हैं........
जिसे चाहा, जो दिल के बहोत ही करीब था
प्रिय पाठकों, कविता संसार जल्द ही एक नए और अधिक वस्तृत रूप में आपके सामने आयेगा |
मौसम ने की ये कैसी करामत आज फिर।
रिमझिम बरस रही वही बरसात आज फिर।।
तुम साथ हो तो भीगने का और है मज़ा।
जागे हैं मेरे दिल में ये जज्बात आज फिर।
'राजीव पराशर'
बरसते मेघ हैं हमको किसी की याद आई है।
हुआ मौसम सुहाना और घटा मद-मस्त छाई है।।
इसी बारिश में ही वो भी कहीं पर भीगता होगा।
हमें ये सोच कर ही भीगने की कब मनाही है।।
'राजीव पराशर'
दिल पर जो आयी नहीं गुज़रती
हमसे ये सबाह नहीं गुज़रती
शाम ओ सहर गुज़र जाते है
पर ये ज़िंदगी नहीं गुज़रती
वक़्त निकल जाता हैं पल में
लेकिन ये उम्र नहीं गुज़रती
यादों की आंधीयां करती हैं तवाफ़
हमसे ये रातें नहीं गुज़रती
एक एक यार गुज़र गया सफ़र में
पर ये दुनिया नहीं गुज़रती
पद्मनाभ
बेघर आज भी बेघर हैं भूखों को कहाँ खाना, और वो कह रहे हैं हम न्य बदलाव लाए हैं...!
न फिज़ा बदली न मुल्क के हालत बदले हैं, पर सुना है अब नए हुक्मरान आए हैं...!
'राजीव पराशर'
घड़ी दो पास तो बैठो मुझे तुम जान जाओगे।
छुपी जो चाहतें दिल में उन्हें पहचान जाओगे।।
दीवाना हूँ तुम्हारा अब तलक ये जानते थे सब।
ये मेरा गीत जो सुनलो तो तुम भी मन जाओगे।।