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कविता संसार --- हिन्दी - उर्दू कविताओं का एक छोटा सा संग्रह।
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Thursday, December 31, 2015
Friday, November 6, 2015
मुझे मेरी मुहब्बत का, सिला मेरे सनम दे दो
मुझे मेरी मुहब्बत का, सिला मेरे सनम दे दो ।
मैं आदी हूं अश्कों का, मुझे सारे गम दे दो ।।
मैं तेरे वास्ते सारे, सितारे तोड़ लांउगा ।
जो तुम मुझको खुशी का एक, छोटा सा इलम दे दो ।।
मैं आशिक हूं मैं इंसानों से, थोड़ा सा जुदा सा हूं ।
संभल जाउंगा मैं दिलबर जो, थोड़ा अपनापन दे दो ।।
बहुत रिसते हैं ये जख्मे, जिगर जो तुमने दे डाले ।
इन्ही के वास्ते अब तो, मुहब्बत का मरहम दे दो ।।
मुहब्बत का हर एक आंसू,जाया हो नही सकता ।
किताबे इश्क लिखने को, हमें अश्क ए पुरनम दे दो ।।
तेरी चाहत में ये 'दिल ' दुनिया भूल बैठा है ।
तुम्हारा हो चुका हूं मैं , मुझे अब अश्क ए नम दे दो ।।
---------एच के शर्मा 'दिल'
मैं आदी हूं अश्कों का, मुझे सारे गम दे दो ।।
मैं तेरे वास्ते सारे, सितारे तोड़ लांउगा ।
जो तुम मुझको खुशी का एक, छोटा सा इलम दे दो ।।
मैं आशिक हूं मैं इंसानों से, थोड़ा सा जुदा सा हूं ।
संभल जाउंगा मैं दिलबर जो, थोड़ा अपनापन दे दो ।।
बहुत रिसते हैं ये जख्मे, जिगर जो तुमने दे डाले ।
इन्ही के वास्ते अब तो, मुहब्बत का मरहम दे दो ।।
मुहब्बत का हर एक आंसू,जाया हो नही सकता ।
किताबे इश्क लिखने को, हमें अश्क ए पुरनम दे दो ।।
तेरी चाहत में ये 'दिल ' दुनिया भूल बैठा है ।
तुम्हारा हो चुका हूं मैं , मुझे अब अश्क ए नम दे दो ।।
---------एच के शर्मा 'दिल'
रचनाकार:
एच के शर्मा 'दिल'
Tuesday, October 27, 2015
गजल - इस कदर ना किसी को सताया करो।
इस कदर ना किसी को सताया करो।
वक्त पर तो कभी काम आया करो।।
बड़े मशरूफ़ हो हमने माना मगर,
कभी तो हम से मिलने आ जाया करो।१।
सामने हो तुम्हारे कोई कश-म्-कश,
हाल-ए-दिल हमको अपना सुनाया करो।२।
रहते हैं तेरे घर से जो कुछ दूर ही,
हाल माँ बाप का पूछ आया करो।३।
पहले झाँको तुम अपने गिरेबान में,
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो।४।
शायरी से ये घर चलने वाला नहीं,
मियाँ "राजीव" कुछ तो कमाया करो।५।
---राजीव पाराशर
वक्त पर तो कभी काम आया करो।।
बड़े मशरूफ़ हो हमने माना मगर,
कभी तो हम से मिलने आ जाया करो।१।
सामने हो तुम्हारे कोई कश-म्-कश,
हाल-ए-दिल हमको अपना सुनाया करो।२।
रहते हैं तेरे घर से जो कुछ दूर ही,
हाल माँ बाप का पूछ आया करो।३।
पहले झाँको तुम अपने गिरेबान में,
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो।४।
शायरी से ये घर चलने वाला नहीं,
मियाँ "राजीव" कुछ तो कमाया करो।५।
---राजीव पाराशर
रचनाकार:
Rajeev Prashar,
गज़ल
गीतकार साहिर लुधियानवी की याद में शानदार मुशायरा ...
...
दिनांक - 25/10/2015,
स्थान - नांगलोई, दिल्ली
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. इस सुन्दर गीत को लिखने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी साहब ,इनका जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ था और निधन 25 अक्तूबर १९८० को हुआ ! कल नई दिल्ली में "अखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन" ,द्वारा तनेजा टायर वर्ल्ड सभागार ,नागलोई ,में इनकी याद में एक शानदार मुशायरा आयोजित किया गया ! जिसके संयोजक थे शायर असलम बेताब रामश्याम "हसीन ",राजीव तनेजा ,राजेश तंवर ,और संजय कुमार गिरि !मुशायरे में मुख्य अतिथि श्री रामचन्द्र वर्मा "साहिल", विशिष्ट अतिथि गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ एवं शायर कुमार देहलवी रहे मुशायरे में अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश प्रजापति(संपादक ट्रू मीडिया ) ने की ! मुशायरे का मंच सञ्चालन कवि दुर्गेश अवस्थी एवं असलम बेताब ने अपने लाजबाब अंदाज में किया ! सरस्वती वंन्दना कीर्ति सिंह जी ने अपनी मधुर कंठ में की ! मुशायरे में दिल्ली एन सी आर से आये लगभग 40 शायर और कवियों ने अपनी शानदार रचनाएं सुनाई -
रामचन्द्र वर्मा साहिल -------
होके ग़ाफ़िल तू अगर शामो-सहर सोता नहीं
आज अपने हाल पे फिर इस तरह रोता नहीं
राहें होतीं ख़ुशनुमाँ और गुल बरसते हर तरफ़
दूसरों की राह में गर ख़ार तू बोता नहीं
निर्देश शर्मा पाबलेवाला-------
हम व्योम वास करने वाली शक्ति में भेद नही करते
हम जिस थाली में खाते है कभी उसमे भेद नही करते
हम नभ गूंजित वर्णो की माला से शब्दों को लाते है
हम मिथ्या को मिथ्या लिख दें फिर प्रकट खेद नही करते
असलम बेताब ------
दिल की आदत ख़राब कर लू क्या ।
अपनी हालत ख़राब कर लू क्या ।
दुनिया दारी : तेरे झमेलों मे
अपनी जन्नत ख़राब कर लू क्या ।
कवि रामश्याम हसीन की सुन्दर पंक्तियाँ जो श्रोताओं को बहुत पसंद आई ---
इसी से मैंने कुछ सोचा नही है
की जो सोचो कभी होता नही है
मिला करता हूँ मिलने को सभी से
सभी से तो मगर रिश्ता नहीं है
कृष्णा नन्द तिवारी के हिन्दू मुस्लिम एकता पर लाजबाब दोहें ----
ईद मनाई साथ में , मातम में भी साथ !
आओ मिलकर थाम ले , इक दूजे का हाथ !!
हरियाणा से आये -हरियाणवी कवि राजेश तंवर --का भी जबाब नहीं ---
तुम्हारे साथ रहकर रौशनी में मैं नहाता हूँ
कभी तुम रात पूनम की कभी दिन का उजाला हो
गाज़ियाबाद से आये कवि मनोज कामदेव जी की लाजबाब रचना ---
दीवार पे लटकी कोई शमशीर नहीं हूँ,
जो आके कैद करले वो जंजीर नहीं हूँ,
मुझको भी अपना हुनर दिखाना आता है,
तभी तो मैं बिकने वाली जाग़ीर नहीं हूँ।।
नज़फगढ़ दिल्ली से राजीव पाराशर------
इस जहाँ में तो सच्ची मुहब्बत नहीं मिलने वाली,
ढूंढ़ोगे शराफत से तो शराफत नहीं मिलने वाली।
भूख से बिलखते हुए बच्चे की आँखों में,
तुम्हें हरगिज़ कोई शरारत नहीं मिलने वाली।
इंद्रप्रस्थ दिल्ली --से कीर्ति रतन ''निशि"----
न छलके आँख से होते तो पैमाने कहाँ जाते
ग़ज़ल गर ज़िन्दगी होती तो अफसाने कहाँ जाते
संजय कुमार गिरि की देश के वीरों के नाम लाजबाब मुक्तक ------
सर झुके गर कभी तो नमन के लिए
जान देनी पड़े तो वतन के लिए
देश पर जान अपनी फ़िदा कर चले
जिस्म पर हो तिरंगा कफ़न के लिए
मुशायरे में कवि शायर अफजाल देहलवी ,असलम जावेद (जामिया ) शायर रामश्याम हसीन शायर असलम बेताब ,राजेश तंवर ,राजीव पाराशर, शुभदा वाजपयी ,निर्देश शर्मा ,शैल भदावरी ,डॉ .पुष्पा जोशी चन्द्रकांता सिवाल ,इब्राहिम अल्वी ,दीपक गोस्वामी ,राजिन्द्र प्रजापति (संवाददाता ट्रू -मीडिया ), आरिफ देहलवी (गीतकार ) राजीव तनेजा ,कवियत्री कीर्ति सिंह,,निर्देशशर्मा ,,कृष्णानंद तिवारी ,संजू तनेजा, आदि थे !
--संजय कुमार गिरि
दिनांक - 25/10/2015,
स्थान - नांगलोई, दिल्ली
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा. इस सुन्दर गीत को लिखने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी साहब ,इनका जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ था और निधन 25 अक्तूबर १९८० को हुआ ! कल नई दिल्ली में "अखिल भारतीय उर्दू- हिंदी एकता अंजुमन" ,द्वारा तनेजा टायर वर्ल्ड सभागार ,नागलोई ,में इनकी याद में एक शानदार मुशायरा आयोजित किया गया ! जिसके संयोजक थे शायर असलम बेताब रामश्याम "हसीन ",राजीव तनेजा ,राजेश तंवर ,और संजय कुमार गिरि !मुशायरे में मुख्य अतिथि श्री रामचन्द्र वर्मा "साहिल", विशिष्ट अतिथि गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ एवं शायर कुमार देहलवी रहे मुशायरे में अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश प्रजापति(संपादक ट्रू मीडिया ) ने की ! मुशायरे का मंच सञ्चालन कवि दुर्गेश अवस्थी एवं असलम बेताब ने अपने लाजबाब अंदाज में किया ! सरस्वती वंन्दना कीर्ति सिंह जी ने अपनी मधुर कंठ में की ! मुशायरे में दिल्ली एन सी आर से आये लगभग 40 शायर और कवियों ने अपनी शानदार रचनाएं सुनाई -
रामचन्द्र वर्मा साहिल -------
होके ग़ाफ़िल तू अगर शामो-सहर सोता नहीं
आज अपने हाल पे फिर इस तरह रोता नहीं
राहें होतीं ख़ुशनुमाँ और गुल बरसते हर तरफ़
दूसरों की राह में गर ख़ार तू बोता नहीं
निर्देश शर्मा पाबलेवाला-------
हम व्योम वास करने वाली शक्ति में भेद नही करते
हम जिस थाली में खाते है कभी उसमे भेद नही करते
हम नभ गूंजित वर्णो की माला से शब्दों को लाते है
हम मिथ्या को मिथ्या लिख दें फिर प्रकट खेद नही करते
असलम बेताब ------
दिल की आदत ख़राब कर लू क्या ।
अपनी हालत ख़राब कर लू क्या ।
दुनिया दारी : तेरे झमेलों मे
अपनी जन्नत ख़राब कर लू क्या ।
कवि रामश्याम हसीन की सुन्दर पंक्तियाँ जो श्रोताओं को बहुत पसंद आई ---
इसी से मैंने कुछ सोचा नही है
की जो सोचो कभी होता नही है
मिला करता हूँ मिलने को सभी से
सभी से तो मगर रिश्ता नहीं है
कृष्णा नन्द तिवारी के हिन्दू मुस्लिम एकता पर लाजबाब दोहें ----
ईद मनाई साथ में , मातम में भी साथ !
आओ मिलकर थाम ले , इक दूजे का हाथ !!
हरियाणा से आये -हरियाणवी कवि राजेश तंवर --का भी जबाब नहीं ---
तुम्हारे साथ रहकर रौशनी में मैं नहाता हूँ
कभी तुम रात पूनम की कभी दिन का उजाला हो
गाज़ियाबाद से आये कवि मनोज कामदेव जी की लाजबाब रचना ---
दीवार पे लटकी कोई शमशीर नहीं हूँ,
जो आके कैद करले वो जंजीर नहीं हूँ,
मुझको भी अपना हुनर दिखाना आता है,
तभी तो मैं बिकने वाली जाग़ीर नहीं हूँ।।
नज़फगढ़ दिल्ली से राजीव पाराशर------
इस जहाँ में तो सच्ची मुहब्बत नहीं मिलने वाली,
ढूंढ़ोगे शराफत से तो शराफत नहीं मिलने वाली।
भूख से बिलखते हुए बच्चे की आँखों में,
तुम्हें हरगिज़ कोई शरारत नहीं मिलने वाली।
इंद्रप्रस्थ दिल्ली --से कीर्ति रतन ''निशि"----
न छलके आँख से होते तो पैमाने कहाँ जाते
ग़ज़ल गर ज़िन्दगी होती तो अफसाने कहाँ जाते
संजय कुमार गिरि की देश के वीरों के नाम लाजबाब मुक्तक ------
सर झुके गर कभी तो नमन के लिए
जान देनी पड़े तो वतन के लिए
देश पर जान अपनी फ़िदा कर चले
जिस्म पर हो तिरंगा कफ़न के लिए
मुशायरे में कवि शायर अफजाल देहलवी ,असलम जावेद (जामिया ) शायर रामश्याम हसीन शायर असलम बेताब ,राजेश तंवर ,राजीव पाराशर, शुभदा वाजपयी ,निर्देश शर्मा ,शैल भदावरी ,डॉ .पुष्पा जोशी चन्द्रकांता सिवाल ,इब्राहिम अल्वी ,दीपक गोस्वामी ,राजिन्द्र प्रजापति (संवाददाता ट्रू -मीडिया ), आरिफ देहलवी (गीतकार ) राजीव तनेजा ,कवियत्री कीर्ति सिंह,,निर्देशशर्मा ,,कृष्णानंद तिवारी ,संजू तनेजा, आदि थे !
--संजय कुमार गिरि
Thursday, October 22, 2015
विजयदशमी की हार्दिक बधाई !!!
करते हैं सबको नमन, और छोटों को प्यार।
बहुत मुबारक आपको, विजयदशमी त्यौहार।
विजयदशमी त्यौहार, चलो इस प्रण को धारें।
मन में जो कैकयी, मंथरा रावण मारें।
कहते हैं "राजीव", कि वो जन कभी न डरते।
लेते स्नेहाशीष, बड़ों को नमन हैं करते।
रचनाकार:
Rajeev Prashar
Wednesday, October 21, 2015
कभी तू भी मुझसे दिल लगा कर तो देख
कभी तू भी मुझसे दिल लगा कर तो देख।
कभी मुझको भी अपनी आँखों में बसा कर तो देख।।
चाहा है तुझे इस कदर कि बिछ जाऊँगा,
इक बार मेरे दर-ए-दिल पर आकर तो देख।1।
तुझे शबनम की बूंदों सा समेट लूंगा मैं,
एक बार मेरी बाँहों में समा कर तो देख।2।
बाज़ी इश्क़ की है और तेरे सामने मैं हूँ,
झुकी हुई इन नजरों को उठा कर तो देख।3।
अगर मैं जीत भी जाऊँ तुझे ना हारने दूंगा,
तू दांव अपने दिल का लगा कर तो देख।4।
अगर कुछ कर नहीं पाया तो तेरे साथ रो लूंगा,
तू दर्द अपने दिल का सुनाकर तो देख।5।
-राजीव पाराशर
कभी मुझको भी अपनी आँखों में बसा कर तो देख।।
चाहा है तुझे इस कदर कि बिछ जाऊँगा,
इक बार मेरे दर-ए-दिल पर आकर तो देख।1।
तुझे शबनम की बूंदों सा समेट लूंगा मैं,
एक बार मेरी बाँहों में समा कर तो देख।2।
बाज़ी इश्क़ की है और तेरे सामने मैं हूँ,
झुकी हुई इन नजरों को उठा कर तो देख।3।
अगर मैं जीत भी जाऊँ तुझे ना हारने दूंगा,
तू दांव अपने दिल का लगा कर तो देख।4।
अगर कुछ कर नहीं पाया तो तेरे साथ रो लूंगा,
तू दर्द अपने दिल का सुनाकर तो देख।5।
-राजीव पाराशर
रचनाकार:
Rajeev Prashar
Wednesday, October 7, 2015
सावन में हर बार सखी
सावन में हर बार सखी
मन जाता है हार सखी।
आँखों से आँसू बहते हैं
रहता कब अधिकार सखी।
यादें उनकी ले आती हैं
सपनों का अम्बार सखी।
पीड़ाओं की महफ़िल है
सपनों का उपहार सखी।
दर्द सभी लेकर नाचे हैं
डमरु और सितार सखी।
---शुभदा बाजपेयी
रचनाकार:
शुभदा बाजपेयी
Wednesday, September 9, 2015
ऐसे में कविता बनती है
जब नन्हा सा कोई बचपन
मजदूरी में पिस जाता हो
मन में बसा हुआ हर सपना
आँखों से रिस जाता हो
जब जर्जर तन पर कोई कपड़ा
कई जगहों से घिस जाता हो
बहती हो आँसू की धारा
पर चेहरा मुस्काता हो
तब साहस करके कोई लेखनी
भावों में अनुभव को जनती है
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(1)
जब किसी जगह पर छोटे बच्चे
भूख के करण बिलख रहे हों
और कहीं पर नेताजी की
महफ़िल में प्याले छलक रहे हों
जब निर्धनता से हार मानकर
कुछ लोग भाग्य पर सिसक रहे हों
और कुछों के घर व आँगन
धन-अम्बरों से खनक रहे हों
जब कहीं अँधेरा छाया हो
और कहीं दिवाली मनती है
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(2)
जब सच से नाता रखने वाले
अन्यायों से हार तरहे हों
रिश्वत लेकर कुछ अधिकारी
सच की गरिमा को मार रहे हों
जब कपटी और बेईमान लोग
झूठे आडम्बर धार रहे हों
और सभी बेबस हो करके
इनको ही स्वीकार रहे हों
जब अहंकार अभिमानों की
हर और ध्वजाएँ तनती हैं
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(3)
-कालीशंकर सौम्य
मजदूरी में पिस जाता हो
मन में बसा हुआ हर सपना
आँखों से रिस जाता हो
जब जर्जर तन पर कोई कपड़ा
कई जगहों से घिस जाता हो
बहती हो आँसू की धारा
पर चेहरा मुस्काता हो
तब साहस करके कोई लेखनी
भावों में अनुभव को जनती है
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(1)
जब किसी जगह पर छोटे बच्चे
भूख के करण बिलख रहे हों
और कहीं पर नेताजी की
महफ़िल में प्याले छलक रहे हों
जब निर्धनता से हार मानकर
कुछ लोग भाग्य पर सिसक रहे हों
और कुछों के घर व आँगन
धन-अम्बरों से खनक रहे हों
जब कहीं अँधेरा छाया हो
और कहीं दिवाली मनती है
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(2)
जब सच से नाता रखने वाले
अन्यायों से हार तरहे हों
रिश्वत लेकर कुछ अधिकारी
सच की गरिमा को मार रहे हों
जब कपटी और बेईमान लोग
झूठे आडम्बर धार रहे हों
और सभी बेबस हो करके
इनको ही स्वीकार रहे हों
जब अहंकार अभिमानों की
हर और ध्वजाएँ तनती हैं
ऐसे में कविता बनती है
ऐसे में कविता बनती है
(3)
-कालीशंकर सौम्य
रचनाकार:
कालीशंकर सौम्य
दोहे
अमर शहीदो को नमन,
रखे हमेशा याद !
उन सब का बलिदान हम,
घूम रहे आज़ाद !!
********
एक बार फिर आइये ,
प्रभुवर मेरे द्वार !
चक्र उठा कर कीजिए ,
दुष्टो का संहार !!
**************
दो विकल्प गर सामने ,
मुश्किल वा आसान !
मुश्किल को चुनिए सदा ,
बने अलग पहचान !!
**कृष्णा नन्द तिवारी**
रचनाकार:
कृष्णा नन्द तिवारी
Tuesday, August 25, 2015
ऐसी रंजिश होती है.....
ऐसी रंजिश होती है जोरु, जमीन और जर की।
बुझ गया चिराग़ रात, रोशनी खत्म हुई एक घर की।।
महंगाई के दौर में भी कितना सस्ता है देखो।
चन्द सिक्के रह गई है कीमत इंसानों के सर की।।
पत्थर दिल समझा था मैंने, अब जाना है खुद को।
ए 'राज़' तेरे इस मंज़र ने मेरी भी आँखें तर की।।
रचनाकार:
Rajeev Prashar
Saturday, August 15, 2015
हिन्दुस्तान तेरे लिए.....
ये जिस्म ये रूह ये जान तेरे लिए।
लहू का एक एक कतरा कुर्बान तेरे लिए।।
पूछे जो परवरदिगार कहाँ भेजू्ँ तुझे इस बार।
जन्म लूंगा मैं हर बार हिन्दुस्तान तेरे लिए।।
-राजीव पाराशर
रचनाकार:
Rajeev Prashar
मैं जितना भूलना चाहूँ
मैं जितना भूलना चाहूँ मुझे वो याद आता है।
के रातों को मेरे ख्वाबों आकर वो जगाता है।।
अगर जो आईना देखूँ शकल उसकी ही दिखती है।
जो करलूँ बन्द मैं आँखें नज़र फिर भी वो आता है।।
-राजीव पाराशर
रचनाकार:
Rajeev Prashar
Sunday, January 25, 2015
तेरी आँखों में जबसे नमी देखि
ना आसमां की झलक ना जमीं देखी
तेरे इश्क़ में न कोई कमी देखी।
रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया
जब से तेरी आँखों में नमी देखी।।
-राजीव पाराशर
रचनाकार:
Rajeev Prashar
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