वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं / हसरत जयपुरी
वो अपने चेहरे में सौ आफ़ताब रखते हैं
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
वो पास बैठें तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं
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