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Wednesday, June 29, 2011

माँ की आखों सी लगी हैं बदलियाँ मेरे पिता


जब तलक लगती नहीं हैं बोलिया मेरे पिता
तब तलक उठती नहीं हैं डोलिया मेरे पिता 


आज भी पगड़ी मिलेगी बेकसों की पाँव में 
ठोकरों में आज भी पसलियाँ मेरे पिता 


बेघरो का आसरा थे जो कभी बरसात में 
उन दरखतो पर गिरी है बिजलिया मेरे पिता


आग से कैसे बचाए खुबसूरत ज़िन्दगी 
एक माचिस में कई है तीलिया में पिता


जब तलक जिन्दा रहेगी जाल बुनने की पर्था 
तब तलक फसती रहेंगी मछलिया मेरे पिता


जिसका जी चाहे नचाये और एक दिन फूक दे 
हूँ नहीं हैं काठ की वो पुतलिया मेरे पिता


मैंने बचपन में खिलौना तक कभी माँगा नहीं 
मेरे बेटा मांगता है गोलिया मेरे पिता


आपको गुस्से में देखा और फिर देखा गगन 
माँ की आखों सी लगी हैं बदलियाँ मेरे पिता

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