I'm very inspired by "Harivanshrai Bachchan"s "Madhushala" suddenly these lines came into my mind and i wrote them. Now i'm trying to make it a tribute to the great poet.
सुध-बुध खोकर झूम रहा हूँ, मैं तो मय पी मतवाला,
जाने कैसी आज पिलाई, तूने मुझको ये हाला ।
प्रीतम तू ही आज बना है इस मधुशाला का साकी,
तेरे गहरे नयन बने हैं मेरे मन की मधुशाला ॥1||
प्रेम कूट कर, प्रेम मिलाकर बनी प्रेम कि ये हाला,
खाली जो मन सबका जग में प्रेम का उसे बना प्याला ।
प्रेम का प्यासा है जग सारा, सबको प्रेम पिला "साकी"
बाँटे से ना कुछ कम होगा, भरी प्रेम की मधुशाला ॥2||
मदिरालय आधारभूत है, बेङी बनी हुई हाला,
कैसे दूर तलक जाएगा, बंधा हुआ पीने वाला ।
मदिरालय की बेङी की मज़बूत कङी तू है "साकी",
जिसके एक छोर पर मयकश, दूजे पर है मधुशाला ॥3||
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