कभी इन ऑखों से बहता नीर देखता हूं
कभी यादों मे खुद की तस्वीर देखता हूं
बारिश की बूंदों से बनती हर लडी मे मैं
किसी बंधन में बांधती जंजीर देखता हूं
वो सवालों जवाबों को भी क्या याद करें
अब तन्हाई मे हाथ की लकीर देखता हूं
उस खुदा से भी अब क्या दुआ करूं मैं
उसे भी इस गली में फकीर देखता हूं
उम्मीद तो नहीं थी कि जी जाऊंगा मैं
आज मैं खुद में बस एक वीर देखता हूं
कभी यादों मे खुद की तस्वीर देखता हूं
बारिश की बूंदों से बनती हर लडी मे मैं
किसी बंधन में बांधती जंजीर देखता हूं
वो सवालों जवाबों को भी क्या याद करें
अब तन्हाई मे हाथ की लकीर देखता हूं
उस खुदा से भी अब क्या दुआ करूं मैं
उसे भी इस गली में फकीर देखता हूं
उम्मीद तो नहीं थी कि जी जाऊंगा मैं
आज मैं खुद में बस एक वीर देखता हूं
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