उस बस्ती मे खिलौने उदास रहते हैं...
उस बस्ती मे खिलौने उदास रहते हैं...
जहाँ बच्चे सदा भट्टी के पास रहते हैं...
कभी ऐसा ना हुआ आँधियों मे मैं खोया...
माँ का दिल और दुआ आस पास रहते हैं...
उस बस्ती मे भिखारी कभी नही जाते...
जिस बस्ती मे लोग ख़ास ख़ास रहते हैं....
मैने देखा है यहाँ दिल से सभी नंगे हैं...
के सभी ओढ़ के झूठा लिबास रहते हैं...
जबसे देखा है गले मिलते हुए इंसांन को...
मौत के ख़ौफ़ से बकरे उदास रहते हैं...
अंधेरे और रोशनी का प्यार गहरा है...
रात की प्यास मे तारे उदास रहते हैं...
मुझे न ख़ौफ़ खुदा का है न ही दुनिया का...
मेरे हाथों मे काँच के गिलास रहते हैं...
ये ग़ज़ल अधपका सा आम कोई है जिसमे...
मेरी खटास और तेरी मिठास रहते हैं...
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