साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं
एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रंगो की एवज़[1] ख़ून-ए-जिगर भरते हैं
इशरत-ए-रफ़्ता[2] ने जा कर न किया याद हमें
इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं
आसमां से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी
अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं
शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन
अच्छे शायर ये सुना है कि जवां मरते हैं
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं
एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रंगो की एवज़[1] ख़ून-ए-जिगर भरते हैं
इशरत-ए-रफ़्ता[2] ने जा कर न किया याद हमें
इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं
आसमां से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी
अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं
शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन
अच्छे शायर ये सुना है कि जवां मरते हैं
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